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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ कृष्ण, षष्ठी, बुधवार, वि० स० २०७०
सच्चा भिखारी -७-
उस पूर्ण
आभाव के समय-पूरी दीनता के काल
में-द्रौपदी ने पूर्णरूप प्रभु को कातरस्वर में पुकार कर कहाँ था-‘हे द्वारकाधीश !
इस कुसमय में दर्शन दो ! दीनबन्धो ! विपत्ति के इस तीरहीन समुन्द्र में तुम्हे
देखकर कुछ भरोसा होगा ।’
द्रौपदी
की आर्त-प्रार्थना सुनकर जगत-प्रभु स्थिर नहीं रह सके । ऐश्वर्यशालिनी रुक्मिणी और
सत्यभामा को छोड़कर भिखारिणी दरिद्रा
द्रौपदी की और दौड़े । द्वारका के अतुलनीय ऐश्वर्यस्तम्भ को देखकर अरण्यवासी
पाण्डवों की पर्णकुटी में विभूतिस्वरुप प्रखर प्रभा प्रकाशित हो गयी । द्रौपदी ने
कहा, ‘नाथ ! क्या इतनी देर करके आना चाहिये ?’
भगवान
बोले, ‘तुमने मुझको द्वारकाधीश के नाम से क्यों पुकारा था, प्राणेश्वर क्यों नहीं
कहाँ ? जानती नही हों, द्वारका यहाँ से कितनी दूर है ? इसी से आने में देर हुई ।’
जो हमारे
प्राणों के अन्दर की प्रत्येक क्रिया को जानते है, उनके सामने माँगने के लिए मुहँ
खोलना बुद्धिमानी नहीं है । भीख की झोली बगल में लेकर दरवाजे पर खड़े होते ही वे
दया करते है । बस, हमे तो चुपचाप उनकी सेवा करनी चाहिये ।......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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