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सच्चा भिखारी -१२-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ कृष्ण, एकादशी, सोमवार, वि० स० २०७०

सच्चा भिखारी  -१२-

 गत ब्लॉग से आगे....जगत ! देख जाओं, आज इस कंगाल के ऐश्वर्य को देख जाओं ! जो कल राह का भिखारी था, वही आज रत्नसिंघासन पर आसीन है । देख जाओं ! आज पर्णकुटीर में त्रिभुवनव्यापिनी माधुरी छा रही है । संसार ! तुम जिस भिखारी को उपेक्षा की दृष्टि से देखते थे, जिस पद-दलित समझते थे, देख जाओं, आज वही भिखारी दीनता के रूप को भेदकर अखिल विश्वब्रह्माण्ड में वर्णीय हो गया है ।

भिखारी ! जगत की चुटकियों की और न देखों । जगत के अपमान की और दृष्टी मत डालों । विविद विपत्तियों से डरकर मत कापों । तुम अपना काम अचल चित से किये जाओं । जितना ही बढ़ा-विघ्न और संकट बढ़ेंगे, उतना ही यह समझों की तुम्हे गोद में लेने के लिए जगत-जननी का हाथ तुम्हारी और बढ़ रहा है । स्नेहमयी माता पुत्र को गोद में लेने से पहले अंघोछे से उसके शरीर को रगड़-रगड़ कर साफ़ करती है ।

साधक ! इसी प्रकार जगतजननी भी तुम्हे गोद में लेने से पूर्व एक बार रगडेगी । इस रगड़ से घबराना नहीं-डरना नहीं । यह समझना की, इस वेदना से तुम्हारी यम-वेदना विध्वंस हो गयी है । इस कष्ट से तुम्हारा सारा कष्ट नष्ट हो गया है, अतएव साधक ! हताश न होना !

 श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
                                                                          

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