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वशीकरण -१-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ कृष्ण, द्वादशी, मंगलवार, वि० स० २०७०

वशीकरण  -१-

द्रौपदी-सत्यभामा-संवाद
 

भगवान् श्रीकृष्ण की पटरानी सत्यभामा एक समय वन में पाण्डवों के यहाँ अपने पति के साथ सखी द्रौपदी से मिलने गयी । बहुत दिनों बाद परस्पर मिलन हुआ था । इससे दोनों को बड़ी ख़ुशी हुई । दोनों एक जगह बैठकर आनन्द से अपने-अपने घरों की बात करने लगी । वन में भी द्रौपदी को बड़ी प्रसन्न और पाँचों पतियों द्वारा सम्मानित देखकर सत्यभामा को आश्चर्य हुआ । सत्यभामा ने सोचा की भिन्न-भिन्न प्रकृति के पांच पति होने पर भी द्रौपदी सबको समान-भाव से खुश किस तरह रखती है । द्रौपदी के कोई वशीकरण तो नही सीख रखा है ।
 
यह सोचकर उसने द्रौपदी से कहाँ-‘सखी ! तुम लोकपालों के समान दृढशरीर महावीर पाण्डवों के साथ कैसे बर्तति हों ? वे तुमपर किसी दिन भी क्रोध नही करते, तुम्हारे कहने के अनुसार ही चलते है और तुम्हारे मुहँ की और ताका करते है, तुम्हारे सिवा और किसी का स्मरण भी नही करते । इसका वास्तविक कारण क्या है ?
 
क्या किसी व्रत, उपवास, तप, स्नान, औषध और कामशास्त्रमें कही हुई वशीकरण-विद्या से अथवा तुम्हारी स्थिर जवानी या किसी प्रकार का जप, होम और अंजन आदि औषधि से ऐसा हो गया है ? हे पान्चाली ! तुम मुझे ऐसा कोई सोभाग्य और यश देने वाला प्रयोग बताओं-

‘जिससे मैं रख सकूँ श्यामको अपने वश में ।’
-जिससे मैं अपने अराध्यदेव प्राणप्रिय श्रीकृष्ण को निरन्तर वश में रख सकूँ । ...शेष अगले ब्लॉग में  
 
श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!! 

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