जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

गुरुवार, फ़रवरी 27, 2014

भगवान शिव


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन कृष्ण , त्रयोदशी, महाशिवरात्रि व्रत,  गुरुवार, वि० स० २०७०

भगवान शिव

सच्चिन्दनान्द्घन, सर्वान्तर्यामी, सर्वाधार, सर्व्गुन्सम्पन्न, गुणातीत, अनादी, अनन्त भगवान शिव के सम्बन्ध में क्या लिखा जाये । कोई शिव-तत्व के ज्ञाता और शिव के परम भक्त ही शिवतत्व और शिव-स्वरुप पर भगवान शिव की कृपा से कुछ लिख सकते है । तथापि अपनी लेखनी तथा वाणी को पवित्र करने के लिए दो-चार शब्द यहाँ लिखे जा रहे है । गुरुजन क्षमा करेंगे ।

1.   भगवान शिव कल्याण स्वरुप, विज्ञानानन्दघन परमात्मा है, वे स्वयं ही अपने ज्ञाता है, अनिर्वचनीय है, अकल है, मन और बुद्धि के अतीत है ।

2.   वही अपने शक्ति द्वारा जगत का सूत्रपात करते है, वही ब्रह्मा रूप से  रचते है, विष्णु रूप से पालन करते है और रूद्र रूप से संघार करते है और अनन्त रुद्रों के रूप में जगत में फैले हुए है । वे सब रूपों में भासते है, सब रूपों में प्रगट है । उन्हीं से सबकी उत्पत्ति है, उन्ही में निवास है और उन्हीं में सब लय होते है । यह उत्पत्ति, पालन और विनाश भी उनकी लीलामात्र है । वही सब कुछ है और साथ ही सब कुछ से विलक्षण भी है ।

3.  शिव सर्वव्यापी, सर्वेश्वर, सर्वोपरि, सर्वरूप, सर्वग्य, सर्वन्त्चक्शु, सर्वातर्यामी, सर्वमय, सर्वसमर्थ, सर्वाश्रय, शक्तिपति, नित्य, शुद्ध-बुद्ध-ज्ञानस्वरूप, ‘सत्यं-शिवम्-सुन्दरम’ है । वे निर्गुण-सगुण, निराकार, साकार हैं, उभयातित है ।

4.   वे माता-पिता, सुह्रद, स्वामी, सखा, न्यायकारी, पतितपावन दीनबन्धु, परम्दयामय, भक्तवत्सल, अशरण-शरण, अति उदार, सर्वस्वदानी, आशुतोष, सम, उदासीन, पक्षपातहीन, शुभप्रेरक, अशुभनिवारक, योगक्षेमवाहक, प्रेममय, भूतवत्सल, शमशानविहारी, कैलाशनिवासी, हिमालयनिवासी, योगीश्वर और महामायावी है ।

5.   वे बहुत शीघ्र प्रसन्न  होते है । ‘नम: शिवाय’ उनका प्रधान मन्त्र है । आबाल-वृद्ध-वनिता, ब्राह्मण, सूद्र, सभी इसका श्रद्धापूर्वक जप करके अपना मनोरथ सिद्ध कर सकते है ।

6.   शिवलिंग-पूजा अश्लील नहीं है, यह परम रहस्यमय तत्व है । शिवकृपा से रहस्यका ज्ञान हो सकता है । भक्ति-श्रद्धा पुर्वक पूजा करनी चाहिये ।

7.   शिवनिन्दा करना और सुनना महापाप है, अतएव उससे सर्वथा बचना चाहिये ।

8.   शिव को परात्पर ब्रह्म मानते हुए शिव, विष्णु, ब्रह्मा में भेद मानना अमंगल का सूचक है । तीनो ही एकरूप है, तीनो की उपासना एककी ही उपासना है ।

9.   शिवतत्व जानने के लिए पक्षपात छोड़कर शिवपुराण आदि का अधयन्न, मनन करना चाहिये ।

10.  ‘शिव’ नाम का जप प्रेमसहित निष्काम भाव से सदा करना चाहिये ।

 
श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

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