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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन कृष्ण , द्वादशी, गुरूवार,
वि० स० २०७०
होली और उस पर हमारा कर्तव्य -1-
इसमें कोई संदेह नहीं की होली हिन्दुओं का बहुत पुराना
त्यौहार है;परन्तु इसके प्रचलित होने का प्रधान कारण और काल कौन सा है इसका एकमत
से अबतक कोई निर्णय नहीं हो सका है | इसके बारे में कई तरह की बाते सुनने में आती
है, सम्भव है, सभी का कुछ-कुछ अंश मिलकर यह त्यौहार बना हो | पर आजकल जिस रूप में
यह मनाया जाता है उससे तो धर्म, देश और मनुष्यजाति को बड़ा ही नुकसान पहुँच रहा है |
इस समय क्या होता है और हमे क्या करना चाहिये, यह बतलाने से पहले, होली क्या है ?
इस पर कुछ विचार किया जाता है | संस्कृत में ‘होलका’ अधपके अन्न को कहते है | वैध
के अनुसार ‘होला’ स्वल्प बात है और मेद, कफ तथा थकावट को मिटाता है | होली पर जो
अधपके चने या गन्ने लाठी में बाँध कर होली की लपट में सेककर खाये जाते है, उन्हें
‘होला’ कहते है | कहीं-कहीं अधपके नये जौकी बाले भी इसी प्रकार सेकी जाती है |
सम्भव है वसंत ऋतू में शरीर के किसी प्राकृतिक विकार को दूर करने के लिए होली के
अवसर पर होला चबाने की चल चली हो उसी के सम्बन्ध में इसका नाम ‘होलिका’, ‘होलाका’
या ‘होली’ पड गया हो | शेष अगले ब्लॉग में ......
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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