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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र कृष्ण, चतुर्दशी, शनिवार, वि० स० २०७०
गो-महिमा -२-
गत ब्लॉग से आगे... गौओं को
यज्ञ का अंग और साक्षात् यज्ञस्वरूप बतलाया गया है । इनके बिना यज्ञ किसी तरह नहीं
हो सकता । ये अपने दूध और घी से प्रजा का पालन-पोषण करती है तथा इनके पुत्र (बैल)
खेती के काम आते है और तरह तरह के अन्न एवं बीज पैदा करते है, जिनसे यज्ञ संपन्न
होते है और हव्य-कव्य का भी काम चलता है । इन्हीं से दूध, दही और घी प्राप्त होते
है । ये गौए बड़ी पवित्र होती है और बैल भूक प्यास कष्ट सह कर अनेको प्रकार के बोझ
ढोते रहते है । इस प्रकार गौ-जाति अपने काम से ऋषियों तथा प्रजाओं का पालन करती
रहती है । उसके व्यवहार में शठता या माया नहीं होती । वह सदा पवित्र कर्म में लगी
रहती है । इसी से ये गौएँ हम सब लोगों के उपर स्थान में निवास करती है । इसके सिवा
गौएँ वरदान भी प्राप्त कर चुकी है तथा प्रसन्न होने पर वे दूसरों को वरदान भी देती
है । (महा० अनु० ८३ ।१७-२१)
गौएँ सम्पूर्ण तपस्विओं से भी बढकर है । इसलिए भगवान शंकर
ने गौओं के साथ रहकर तप किया था । जिस ब्रह्मलोक में सिद्ध ब्रह्मर्षि भी जाने की
इच्छा करते हैं, वहीँ ये गौएँ चन्द्रमा के साथ निवास करती है । ये अपने दूध, दही,
घी, गोबर, चमड़ा, हड्डी, सींग और बालों से भी जगत का उपकार करती है । इन्हें सर्दी,
गर्मी और वर्षा का कष्ट विचलित नहीं करता । ये गौएँ सदा ही अपना काम किया करती है ।
इसलिए ये ब्राह्मणों के साथ ब्रह्मलोक में जाकर निवास करती है । इसे से गौ और
ब्राह्मण को विद्वान पुरुष एक बताते है । (महा०
अनु० ६६ ।३७-४२) ....... .......शेष अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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