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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, प्रतिपदा, सोमवार, वि० स० २०७०
नाथ मैं थारो जी थारो।
(राग खमाच-ताल दीपचंदी) (मारवाड़ी बोली)
नाथ मैं थारो जी थारो।
चोखो, बुरो, कुटिल
अरु कामी, जो कुछ हूँ सो थारो॥
बिगड्यो हूँ तो थाँरो
बिगड्यो, थे
ही मनै सुधारो।
सुधर्यो तो प्रभु सुधर्यो थाँरो, थाँ सूँ कदे न न्यारो॥
बुरो, बुरो,
मैं भोत बुरो हूँ, आखर टाबर थाँरो।
बुरो कुहाकर मैं रह जास्यूँ, नाँव बिगड़सी थाँरो॥
थाँरो हूँ, थाँरो
ही बाजूँ, रहस्यूँ थाँरो, थाँरो
!!
आँगलियाँ नुँहँ परै न होवै, या तो आप बिचारो॥
मेरी बात जाय तो जाओ, सोच
नहीं कछु हाँरो।
मेरे बड़ो सोच यों लाग्यो बिरद लाजसी थाँरो॥
जचे जिस तराँ करो नाथ !
अब, मारो
चाहै त्यारो।
जाँघ उघाड्याँ लाज मरोगा, न्नँडी बात बिचारो॥
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, पदरत्नाकर पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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