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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
आषाढ़ कृष्ण , द्वादशी, मंगलवार, वि० स० २०७१
भोगो के आश्रय से दुःख -१-
जैसे कोई बीहड़ जंगल होता है-घना । उसमे न कही रहने का ठीक
स्थान, न कही बैठने की जगह, न सोने का आराम, अनेक प्रकार के जन्तुओं से भरा हुआ-सब
तरफ अन्धकार और भय है । इसी तरह यह संसारान्य है । यह जगत रुपी जंगल वास्तव में
बड़ा भयानक है ।
भगवान् ने इस दुखालय कहा, असुख कहा । दुःखयोनी कहा, भगवान् बुद्ध
ने दुःख-ही-दुःख बतलाया तो इस दुखारन्य में-दुःख के जंगल में सुख खोजना-ये निराशा
की चीज है । कभी ये पूरी होती नही । अब भ्रम से मनुष्य यह मान लेता है की अबकी बार
का ये कष्ट निकल जाये फिर दूसरा कोई कष्ट नही आएगा । एक उलझन को सुलझाता है, सम्भव
है की और उलझ जाये और सम्भव है थोड़ी बहुत सुलझे, फिर नयी उलझन आ जाये । पर उलझनों
का मिटना सम्भव नही है ।
संसार का यही स्वरुप है । अतएव शान्ति, सुख चाहनेवाले
प्रत्येकमनुष्य-बुद्धिमान मनुष्य से कहिये की दूसरा रास्ता नही है, वह जगत से
निराश हो जाय ।.... शेष
अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, कल्याण वर्ष ८८, संख्या ६, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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