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भोगो के आश्रय से दुःख -२-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

आषाढ़ कृष्ण , त्रयोदशी, बुधवार, वि० स० २०७१

भोगो के आश्रय से दुःख  -२-

गत ब्लॉग से आगे....... जैसे जगत के प्राणी-पदार्थ-परिस्थितियों से उसकी आशा बनी है, जबतक वह अपनी इन आशाओं की पूर्ती के लिए प्रयत्न करता है तो कहीं-कहीं प्रयत्न में सफलता भी दिखायी पडती है, पर वह नई-नई उलझन पैदा करने के लिए हुआ करती है । जगत का अभाव कभी मिटता नही; क्यों नही मिटता ? क्योकि भगवान् के बिना यह जगत अभावमय ही है, अभावरूप ही है-ऐसा कहा है । दुखो से आत्यंतिक छुटकारा मिलेगा तो तब मिलेगा, जब संसार से छुटकारा मिल जाय और संसार से छुटकारा तभी मिलेगा, जब इसे हम छोड़ देना चाहे ।
 
इसे पकडे रहेंगे और इससे छुटकारा चाहेंगे-नही मिलेगा । इसे पकडे रहेंगे और सुख-शान्ति चाहेंगे-नही मिलेगी । मेरा बहुत काम पड़ा है अब तक बहुत से लोगों से मिलने का, बहुत तरह के लोगों से । पर जब उनसे अनके अन्तर की बात खुलती है तो शायद ही दो-चार ही ऐसे मिले हो, जो वास्तव में संसार से उपरत है ।
 
पर प्राय: सभी जिनको लोग बहुत सुखी मानते है, बहुत संपन्न मानते है, बाहर से जिनको किसी प्रकार का अभाव नही दीख पड़ता, किसी प्रकार की चिंता का कोई कारण नही दीख पड़ता, हमारी अपेक्षा वे सभी विषयों से बहुत समन्वित और संपन्न दीखते है, ऐसे लोग भी अन्दर से जलते रहते है; क्योकि यहाँ पर जलन के सिवा कुछ है ही नही तो संसार की समस्याओं को, संसार की उलझनों को सुलझाने में ही जीवन उलझा रहता है और वे उलझने नित्य नयी बढती रहती है ।.... शेष अगले ब्लॉग में        

 श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, कल्याण वर्ष ८८, संख्या ६, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

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