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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
आषाढ़ शुक्ल, चतुर्थी, मंगलवार, वि० स० २०७१
भोगो के आश्रय से दुःख -५-
गत
ब्लॉग से आगे.......तुलसीदास जी महाराज ने एक बड़ी सुन्दर बात कही है, वह केवल रोचक शब्द
नही है, सिद्धान्त है, उनका अनुभूत सिद्धान्त है । उन्होंने इस सिद्धान्त की स्वयं
अपने मुख से तारीफ़, बखान किया-
बिगरी जन्म अनेक की सुधरे अबही आजु
।
होहि राम कौ नाम जपु तुलसी तजि
कुसमजु ।। (दोहावली २२)
सबसे पहली बात है ‘होहि राम कौ ।’
हम जो दुसरे-दुसरे बहुतों के हो रहे है और बहुतों के बने रहना चाहते है, दूसरों का
आधिपत्य छुटता नहीं और दुसरे जो है, वे सारे परिवर्तनशील है, अनित्य है, दुखमय है ।
उनसे हमको मिलेगा क्या ? तो ‘होहि राम कौ’ बस भगवान् के हो जाय तो नेकों जन्म की
बिगड़ी हुई आज ही सुधर जाएगी ।
तुलसीदास जी ने कहा हम तो झूठी पत्तलों को चाटते रहे
हमेशा और कहीं पेट भरे ही नहीं, कही तृप्ति हुई ही नही, कही शान्ति मिली ही नहीं
और भगवान् का स्मरण करते ही ‘सो मैं सुमिरत राम’ राम का सुमिरन करते ही, ‘देखत
परसु धरो’ सुधारस, अमृतरस परोसा रखा है मेरे सामने-ये मैं देखता हूँ, तब मैंने
दूसरी और ताकना, दूसरी और आस्था रखनी बंद कर दिया ।
एक भरोसो एक बल एक आस बिस्वास ।
एक राम घन श्याम हित चातक तुलसीदास
।.... शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, कल्याण वर्ष ८८, संख्या ६, गीताप्रेस
गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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