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राग केदार—ताल कहरवा
दुर्लभ परम त्यागमय पावन प्रेम-मूर्ती
आदर्श महान।
महाभावरूपा श्रीराधा, जिनके प्रेमवश्य भगवान॥
नहीं तनिक भी स्व-सुख-वासना, नहीं मोह-माया-मद-मान।
प्रियतम-पद-पूर्णार्पित जीवन, जगके सारे द्वन्द्व समान॥
मुक्ति-बन्ध वैराग्य-भोगके
ग्रहण-त्यागका कभी न ध्यान।
प्रियतम-सुख ही सब कार्योंमें करता
नित्य प्रेरणा-दान॥
प्रेममयी शुचितम श्रीराधाके पद-रज-कण
रसकी खान।
वे स्वीकार करें इस जन नगण्यके
नमस्कार निर्मान॥
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