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राग बिहाग—तीन ताल
करुणामय! उदार चूड़ामणि! प्रभु! मुझको
यह दो वरदान।
देखूँ तुम्हें सभीमें, सभी अवस्थाओंमें हे भगवान॥
शब्द मात्रमें सुन पाऊँ मैं नित्य
तुम्हारा ही गुण-गान।
वाणीसे गाऊँ मैं गुणगण, नाम तुम्हारे ही रसखान॥
इन्द्रिय सभी सदा पुलकित हों पाकर
मधुर तुम्हारा स्पर्श।
कर्म नित्य सब करें तुम्हारी ही सेवा, पावें उत्कर्ष॥
बुद्धि, चित्त,
मन रहें सदा ही एक तुम्हारी स्मृतिमें लीन।
कभी न हो पाये विचार-संकल्प-मनन, प्रभु! तुमसे हीन॥
सदा तुम्हारी ही सेवामें सब कुछ रहे
सदा संलग्न।
यही प्रार्थना—रहूँ तुम्हारे पद-रति-रसमें नित्य निमग्न॥
-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार
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