जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

मंगलवार, दिसंबर 26, 2017

पदरत्नाकर

[ ६७ ]
राग जौनपुरीतीन ताल

सबमें सब देखें निज आत्मा, सबमें सब देखें भगवान।
सब ही सबका सुख-हित देखें, सबका सब, चाहें कल्यान॥
एक दूसरेके हितमें सब करें परस्पर निज-हित-त्याग।
रक्षा करें पराधिकारकी, छोड़ें स्वाधिकारकी माँग॥
निकल संकुचित सीमासे स्वकरे विश्वमें निज विस्तार।
अखिल विश्वके हितमें ही हो स्वार्थशब्दका शुभ संचार॥
द्वेष-वैर-हिंसा विनष्टहों, मिटें सभी मिथ्या अभिमान।
त्याग-भूमिपर शुद्ध प्रेमका करें सभी आदान-प्रदान॥
आधि-व्याधिसे सभी मुक्त हों, पायें सभी परम सुख-शान्ति।
भगवद्भाव उदय हो सबमें, मिटे भोग-सुखकी विभ्रान्ति॥
परम दयामय!   परम प्रेममय!   यही प्रार्थना बारंबार।

पायें सभी तुम्हारा दुर्लभ चरणाश्रय, हे परम उदार!  ॥

-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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