[ २१ ]
राग भीमपलासी—तीन
ताल
श्रीराधा! कृष्णप्रिया!
सकल सुमङ्गल-मूल।
सतत नित्य देती रहो पावन निज-पद-धूल॥
मिटें जगतके द्वन्द्व सब,
हों
विनष्टसब शूल।
इह-पर जीवन रहे नित तव सेवा अनुकूल॥
देवि! तुम्हारी कृपासे करें कृपा श्रीश्याम।
दोनोंके पदकमलमें उपजे भक्ति ललाम॥
महाभाव, रसराज
तुम दोनों करुणाधाम।
निज जन
कर, देते रहो निर्मल रस
अविराम॥
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