[ ३५ ]
राग माँड़—ताल
कहरवा
राधा-माधव-जुगल के प्रनमौं पद-जलजात।
बसे रहैं मो मन सदा,
रहै
हरष उमगात॥
हरौ कुमति सबही तुरत,
करौ
सुमति कौ दान।
जातें नित लागौ रहै तुव पद-कमलनि
ध्यान॥
राधा-माधव! करौ मोहि निज किंकर स्वीकार।
सब तजि नित सेवा करौं,
जानि
सार कौ सार॥
राधा-माधव! जानि मोहि निज जन अति मति-हीन।
सहज कृपा तैं करौ नित निज सेवा में
लीन॥
राधा-माधव! भरौ तुम मेरे जीवन माँझ।
या सुख तैं फूल्यौ फिरौं,
भूलि
भोर अरु साँझ॥
तन-मन-मति सब में सदा लखौं तिहारौ रूप।
मगन भयौ सेवौं सदा पद-रज परम अनूप॥
राधा-माधव-चरन रति-रस के पारावार।
बूड्यौ, नहिं
निकसौं कबहुँ पुनि बाहिर संसार॥
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