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मई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

श्रीभगवन्नाम- 7 भगवन्नाम के मूल्य पर एक दृष्टान्त

भगवन्नाम के मूल्य पर एक दृष्टान्त एक श्रद्धालु भक्त प्रतिदिन गांव के बाहर एक महात्मा के पास जाया करता था। जब महात्मा की सेवा करते-करते उसे बहुत दिन बीत गये तब महात्मा ने उसे अधिकारी समझकर कहा कि ' वत्स! तेरी मति भगवान में है , तू श्रद्धालु है , गुरु सेवापरायण है , कुतार्किक आलसी नहीं है , शास्त्र वचनों में विश्वास है , किसी का बुरा नहीं चाहता , किसी से घृणा और द्वेष नहीं करता , सरल-चित्त है , काम , क्रोध , लोभ से डरता है , संतों का उपासक है और जिज्ञासु है ; इसलिये तुझे एक ऐसा गोपनीय मन्त्र देता हूँ जिसका पता बहुत ही थोड़े लोगों को है। यह मन्त्र परम गुप्त और अमूल्य है , किसी से कहना नहीं! ' यों कहकर महात्मा ने उसके कान धीरे से कह दिया ' राम ' । श्रद्धालु भक्त मन्त्रराज ' राम ' का जप करने लगा। वह एक दिन गंगा नहाकर लौट रहा था तो उसका ध्यान उन लोगोंकी तरफ गया तो हजारों की संख्या में उसी की तरह गंगा नहाकर जोर-जोर से ' राम-राम ' पुकारते चले आ रहे थे। सुनता तो रोज ही था परंतु कभी इस ओर उसका ध्यान नहीं गया था। आज ध्यान जाते ही उसके मन में यह विच

श्रीभगवन्नाम- 6 नामके दस अपराध

नामके दस अपराध बतलाये गये हैं- (१) सत्पुरुषों की निन्दा , ( २) नामों में भेदभाव , ( ३) गुरु का अपमान , ( ४) शास्त्र-निन्दा , ( ५) हरि नाम में अर्थवाद (केवल स्तुति मंत्र है ऐसी) कल्पना , ( ६) नामका सहारा लेकर पाप करना , ( ७) धर्म , व्रत , दान और यज्ञादि के साथ नाम की तुलना , ( ८) अश्रद्धालु , हरि विमुख और सुनना न चाहने वाले को नामका उपदेश करना , ( ९) नामका माहात्म्य सुनकर भी उसमें प्रेम न करना और (१०) ' मैं ', ' मेरे ' तथा भोगादि विषयों में लगे रहना।   यदि प्रमादवश इनमें से किसी तरहका नामापराध हो जाय तो उससे छूटकर शुद्ध होने का उपाय भी पुन: नाम-कीर्तन ही है। भूल के लिये पश्चात्ताप करते हुए नाम का कीर्तन करने से नामापराध छूट जाता है। पद्मपुराण   का वचन है — नामापराधयुक्तानां नामान्येव हरन्त्यघम्। अविश्रान्तप्रयुक्तानि तान्येवार्थकराणि च॥ नामापराधी लोगों के पापों को नाम ही हरण करता है। निरन्तर नाम कीर्तन से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। नाम के यथार्थ माहात्म्य को समझकर जहाँ तक हो सके , नाम लेने में कदापि इस लोक और परलोक के भोगों की जरा-सी भी कामना नहीं करनी चाहिये।

श्रीभगवन्नाम- ५ नामका फल अवश्य होता है

नामका फल अवश्य होता है परंतु जैसा चाहिये वैसा नहीं होता। दम्भार्थ नाम लेने वाले भी संसार में पूजे जाते हैं। उनके पापोंका नाश भी होता ही है , परंतु अनन्त जन्मों के संचित और इस समय भी लगातार होनेवाले अनन्त पाप श्रद्धा रहित नाम से पूरे नष्ट नहीं हो पाते। नामसे पूरा फल प्राप्त न होने में श्रद्धा के अतिरिक्त एक और प्रधान कारण है – साधक का सकाम भाव! हम बहुत बड़ी मूल्यवान् वस्तु को बहुत सस्ते दामों पर बेच देते हैं। सिर में मामूली दर्द होता है तो उसे मिटाने के लिये "राम-राम" कहते हैं। सौ-पचास रुपये कमाई के लिये राम-नाम लेते हैं। स्त्री , बच्चों की आरोग्यता के लिये राम-नाम लेते हैं। मान-बड़ाई पाने के लिये राम-नाम कहते हैं। संतान-सुख के लिये राम-नाम कहते हैं। फल यह होता है कि हम राम-नाम लेनेपर भी कमाने के साथ ही लुटाने वाले मूर्ख के समान जैसे-के-तैसे ही रह जाते हैं। चलनी में जितना भी पानी भरते रहो , सभी निकल जायगा। हमारा अन्तःकरण भी कामनाओं के अनन्त छेद से चलनी हो रहा है। इसमें कुछ भी ठहरता नहीं। राम-नामका फल कैसे हो ? प्यास लगी हुई है , जगत् में सुखकी पिपासा किसको नहीं है ? पव

Sharnagati Ka Pahala Bhaav - Shri Hanuman Prasad Poddar- Bhaiji