भगवान् ने गीतामें घोषणा की है -- ' जीवनके अन्तकालमें जो मेरा स्मरण करते हुए शारीरको छोड़कर जाता है -- ऐसा कोई भी हो , वह मुझको प्राप्त होता है -- इसमें संदेह नहीं है! ' जगतमें भी हम देखते हैं कि छायाचित्र लेनेमें कैमरेका स्विच दबानेके समय सामनेवालेकी जैसी आकृति होती है , वैसी ही फोटो आती है! भगवान् की इस घोषणाका हम दुरूपयोग करते हैं और कहते हैं कि ' जब अन्तकालमें भगवान् का स्मरण कर लेनेमात्रसे भगवान् की प्राप्ति हो जायगी तो अभी अन्य जरूरी- जरूरी काम कर लिये जायँ , अन्तकालमें भगवान् का स्मरण कर लेंगे! इसपर भगवान् ने सावधान किया है कि ' जीवनभर जिस कार्यमें मन रहेगा , अन्तकालमें उसीका स्मरण होगा-- यह निशचय है! अतएव सब समय मेरा स्मरण करते हुए जगतका काम करो! ' जीवनभर मुझे भुलाये रहकर अन्तकालमें मेरे स्मरणकी आशा कदापि न करो ; यह धोखा है! इससे सावधान हो जाओ! कुछ करना नहीं है , केवल अपने मुखको भगवान् के सम्मुख मोड़ देना है! भगवान् के सम्मुख होते ही भगवान् के विरोधी अपने-आप विमुख हो जायँगे! भोग-विमुखता और भगवत -सम्मुखता -- दोनों साथ -साथ होती हैं! भोगका अर्थ
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