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जनवरी, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सद्गुरु -6-

|| श्री हरी || आज की शुभ तिथि – पंचांग माघ कृष्ण,पन्चमी,गुरुवार, वि० स० २०६९ January 31 , 2013, Fri day   सद्गुरु शिष्य के द्वारा यदि कोई पूजन चाहता है तो वह यही चाहता है | इसके विपरीत शिष्य की आत्मिक उन्नति का कुछ भी ख्याल न रख जो मान,बड़ाई के भूखे रहते है, केवल अपने पैर पुजवाने, आरती उतरवाने में जिसको प्रसन्नता होती है,वे कदापि सद्गुरु नही है | विशेषकर जो गुरु के आसन पर बैठ कर धन और स्त्री की इच्छा करते है उनसे तो बहुत ही सावधान रहना चाहिये | भागवत में कहा है की सत्पुरुष धन और स्त्रियो के संगियो का संग भी दूर से त्याग दे | इसके विपरीत, जो अपने को सत्पुरुष मानते है और कहलाते हुए भी कामिनी-कान्न्चन में आसक्त रहते है, उनको साधु मानना बहुत ही जोखिम का काम है | कुछ वर्ष पूर्व गोरखपुर में एक विद्वान सन्यासी आये थे, वे आठ साल से सदगुरु की खोज में थे | खेद की बात है भाग्यवश उन्हें आरम्भ में ही बहुत कटु अनुभव हो गए, जिससे वे उस समय भी शंकाशील बनगए थे   और ‘दूध का जला छाछ का भी फूकं-फूँक कर   पीता है’ इस कहावत के अनुसार वे हर जगह केवल संदेह करते   और श्रधा छोड़ कर केवल परी

सदगुरु -5-

|| श्री हरी || आज की शुभ तिथि – पंचांग माघ कृष्ण, तृतीया ,बुधवार, वि० स० २०६९           तो बाहर से अच्छे बने   हुए दम्भी चालाक आदमी जीवन भर दम्भ रचकर लोगो को धोखे में डाले रख सकता है ; परन्तु यदि उसके पास रहने और उसकी बात मानने, सुनने से अपने अन्दर कोई बुरा भाव पैदा नहीं पैदा हो तो उससे इतना अनिष्ट नही हो सकता; यदपि उसके संग से भी गिरने का भय रहता है | सन्मार्ग मिलना तो असम्भव-सा ही है, परन्तु यदि कोई मनुष्य सच्ची ईश्वर-प्राप्ति की लालसा से ऐसे मनुष्य के फंदे में फस जाये, जो दम्भी हो और जिसके आचरण बाहर से पवित्र हो और जिसके संग से प्रकाश्य में कोई बुराई   न उत्पन्न होती हो तो परमात्मा उस सच्चे   मनुष्य की तब तक रक्षा करता है, जबतक की वह आसक्ति   के वश होकर दम्भ में सम्मलित नहीं होता | जो लोग अपनी पूजा करवाते है, पूजा करने को कहते है,पूजा करनेवाले को अच्छा और न करनेवालो को अच्छा और न करवाने वालो को बुरा समझते है,अपनी पूजा के ही उपदेश करते है, ‘गोविन्द से गुरु’ ‘राम से राम के दास’ बड़े का उदहारण देकर अपने को भगवान से बड़ा बतलाकर शिष्यों की भक्ति खरीदना चाहते है, उनस

सद्गुरु -4-

|| श्री हरी || आज की शुभ तिथि – पंचांग माघ कृष्ण, द्वितीया,मंगलवार, वि० स० २०६९   भगवान ने कहा है - ‘जिसके मन में मान-मोह नहीं है, जिन्होंने आसक्ति के दोष पर विजयी प्राप्त कर ली है, जो नित्य परमात्मा के स्वरुप में स्तिथ रहते है, जिनकी लोकिक-परलोकिक कामनाएँ भली-भाँती   नष्ट हो गयी है, जो सुख-दुःख नामक द्वन्दो से सर्वथा छूट गए है, ऐसे बुद्धिमान पुरुष ही उस परमपद को प्राप्त होते है |’ (गीता १५|४)         ‘जिनकी बुद्धि परमात्म रूप हो गयी है, जिनका मन परमात्मरूप है, जिनकी निष्ठा केवल परमात्मा में ही है, जो केवल परमात्मा के ही परायण है, ऐसे ज्ञान के द्वारा पापरहित हुए पुरुष ही अपुनारावृतिरूप परमगति को प्राप्त होते है |’ (गीता ५|१७) भगवान ने इसी प्रकार के तत्वदर्शी ज्ञानियो की शरण में जाकर प्रणिपात,सेवा और निष्कपट प्रश्नों द्वारा ज्ञान प्राप्त करने के लिए उपदेश दिया है | इसके विपरीत जो कुछ भी नहीं जानने पर भी ‘सब जाननेवाले’ बनने का दम भरते है, जो ‘सोने की चिड़िया’ फ़साने के लिए सदा-सर्वदा ही मिथ्या मधुर भाषण और व्यवहार का जाल बिछाये रखते है, जो पूजा करनेके लिए पैर फैला

सद्गुरु -3-

|| श्री हरि: || आज की शुभ तिथि – पंचांग माघ कृष्ण, प्रतिपदा, सोमवार, वि० स० २०६९ सन्यासियों  और गृहस्थों में आज भी अनेक अच्छे साधक और महात्मा हैं | सच्चे ऋषियों का आज भी अभाव नहीं है, परन्तु वे प्राय: अप्रकट रहते हैं | प्रकट रहनेवालो को पहचानना भी बड़ा कठिन होता है; क्योंकि उनका बाहरी वेष तो कोई विलक्षण होता नहीं, जिससे लोग कुछ अनुमान कर सके | यह सब होते हुए भी श्रद्धा को मन में पूरा स्थान देते हुए भी, आजकल के समय में बहुत ही सावधानी के आवश्यकता है | आज अवतारों, जगत-गुरुओ, विश्वउपदेशको (वर्ल्ड टीचर्स), सदगुरुओ, ज्ञानियो, योगिराजो और भक्तों की आज देश में हाट लग रही है | ऐसे कई   व्यक्तिओ के नाम तो यह लेखक ही जानता है, जिनकी खुल्लमखुल्ला अवतार कहकर पूजा की जाती है और उसको स्वीकार करते है | पता नहीं ईश्वर के कितने अवतार एक साथ ही देश में कैसे हो गये? आश्चर्य तो यह है कि एक अवतार दुसरे अवतार को मानने के लिए तैयार ही नहीं है | ऐसी स्तिथी में ये अवतार वास्तव में क्या वस्तु है ? इस बात को प्रत्येक विचारशील पुरुष सोच सकते हैं | गुरु तो गाँव-गाँव और गली-गली में मिल सकते है, सब

सद्गुरु -2-

|| श्री हरि: || आज की शुभ तिथि – पंचांग पौष शुक्ल, पूर्णिमा, रविवार, वि० स० २०६९ इसमें सन्देह नहीं की यदि सद्गुरु प्राप्ति की अति-तीव्र इच्छा हो तो स्वयं परमात्मा सद्गुरु रूप से प्रगट होकर मुमुक्षु साधक को साधनपथ प्रदर्शित कर कृतार्थ कर सकते है | खोज मन से होनी चाहिये और होनी चाहिये केवल तत्वज्ञ पुरुष को प्राप्तकर स्वयं तत्व समझने के पवित्र उदेश्य से; परीक्षा या कौतूहल के लिए नहीं; क्योकि सच्चे संत न तो परीक्षा दिया करते है, न परीक्षा में उत्तीर्ण होकर जगत में मान प्रतिष्ठा   प्राप्त करने या प्रतिभाशाली व्यक्तिओ उन्हें शिष्य बनाने की इच्छा रखते है | जो श्रधा से उनकी शरण होता है, उसी के सामने वे उसके अधिकारनुसार रहस्य प्रगट किया करते है | गोपनीय रहस्य अतपस्क, अश्रद्धालु, तार्किक, दोषानवेषणकारी, नास्तिक और कौतूहल प्रिय मनुष्य के सम्मुख प्रगट करने में न तो कोई लाभ है और न साधु-सुधीजन प्रगट किया करते है | भगवान ने स्वयं श्रीमुख से अधिकार की मीमांसा कर दी है इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन | न चासुश्रवे वाच्यं न च मां योअभ्य्सूयति ||            ‘यह जो परम गुप्

सद्गुरु -1-

|| श्री हरि: || आज की शुभ तिथि – पंचांग माघ   शुक्ल, चतुर्दशी, शनिवार, वि० स० २०६९ गुरुर्ब्रह्मा गुरुविष्णु: गुरुर्देवो महेश्वरः | गुरु: साक्षातपरम्   ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः || भारतीय साधना में गुरु-शरणागति सर्वप्रथम हैं | सद्गुरु की कृपा बिना साधना का यथार्थ रहस्य समझ में नहीं आ सकता |केवल शास्त्रों और तर्कों से लक्ष्य तक नहीं पंहुचा जा सकता | अनुभवी सद्गुरु साधनपथ के अन्तराय, उससे बचने के उपाय और साधन मार्ग का उपादेय पाथेय बतलाकर शिष्य को लक्ष्य तक अनायास ही पहुँचा देते है | इसलिये श्रुतियो से लेकर वर्तमान समय के संतो की वाणी तक सभी में एक स्वर से सद्गुरु की शरण में उपस्थित होकर अपने अधिकार के अनुसार उनसे उपदेश प्राप्त कर तदनुकूल आचरण करने का आदेश दिया है | सभी संतो ने मुक्तकंठ से गुरु महिमा का गान किया है | यहाँ तक की गुरु और गोविन्द   दोनों के एक साथ मिलने पर पहले गुरु को ही प्रणाम करने की विधि बतलाई गयी है; क्योकि गुरु कृपा से ही गोविन्द के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है | गुरु की महिमा अवर्णनीय है | वे पुरुष धन्य हैं - बड़े ही सौभाग्यवान है

सुखी होने का सर्वोत्तम उपाय -3-

॥ श्री हरि: ॥ आज की शुभ तिथि – पंचांग पौष शुक्ल , चतुर्दशी , शुक्रवार , वि० स० २०६९ भोगों की आस्था वाले जीव में तीन चीजे अवश्यमेव रहती है निरन्तर चित अशान्त रहता है और अशान्ति है तो सुख कहाँ ? ‘ अशान्तस्य कुत: सुखम ’ (गीता २ | ६६)   | ऐसे ही दुःख भी रहता है और भोगों की आस्था मन में है तो पाप बने बिना नहीं रहेगा | जहाँ-जहाँ भोगो पर विश्वास है , वहा-वहाँ अशान्ति और दुःख है ही | फिर वहाँ किसी-न-किसी रूप में थोडा-बहुत पाप बनता ही है | यह हम सबके जीवन का अनुभव है | भोगो पर आस्था , भोग पर विश्वास और भोगो में आसक्ति यदि है तो अशान्ति , दुःख और पाप ये तीन चीजे उसे मिलेंगी और आगे जाकर इसका फल होगा :- ‘ नरकेअनियतं   वास: ’ ( गीता १ | ४४) , ‘ प्रसक्ता: काम भोगेषु पतन्ति नरकेसुचो ’ ( गीता १६ | २६) जो काम और भोगो में आसक्त है , वे अशुचि नरकों में गिरेंगे | यह जीवन का परिणाम है | यह नहीं चाहिये तो भगवान् में आस्था करो | भगवान् पर विश्वास करो | शरणागत हो जाओ , तब तुरंत अशान्ति मिट जायेगी | तुरंत दुःख मिट जायेंगे और जीवन में पाप होगा ही नही | सब भगवान् की सेवा

सुखी होने का सर्वोत्तम उपाय -2-

।। श्री हरि: ।। आज की शुभ तिथि – पंचांग   पौष शुक्ल , त्रयोदशी , वीरवार , वि० स० २०६९ भगवान ही कालस्वरुप है , अनादी है । जब सृष्टी का सृजन होता है तो पहले भगवान काल का स्मरण करते है । ‘ एकोअहम बहु स्याम ’ काल भगवान का स्वरुप है और यह निरन्तर चलता है । सब चीजें रुक जायेंगीं , लेकिन काल नहीं रूकेगा । समय व्यतीत होना बंद नहीं होगा । ये काल देवता रुकेंगे नहीं । मौत आ ही जायेगी ।चाहे हम रोते रहे या हँसते रहे । चाहे अपने मन में कलपते रहे , चाहे मन में संतोष करके रहे । काल तो मानेगा नहीं और मृत्यु आ जाएगी । मृत्यु आई कि यहाँ का सब समाप्त हो जायेगा । हम पहले कहीं तो थे । किसी-न-किसी जगह हम पहले थे । चाहे कुत्ता , बिल्ली हों , चाहे देवता हों , आदमी हों , वहाँ हमारा परिवार होगा ही । हमे क्या आज उसकी चिन्ता है ? आज उसका स्मरण करते है क्या ? यदि कोई बता दे कि पहले तुम्हारा वह परिवार था , तब कहेंगे रहा होगा । अब तो यह है ।यही हाल यहाँ भी होगा । यहाँ से जब मर जायेंगे तो जैसे उसको भूल गये , वैसे ही इसको भी भूल जायेंगे । सम्बन्ध टूट जायेगा । इसलिये यहाँ से सम्बन्ध पहले स