|| श्रीहरिः || आज की शुभतिथि-पंचांग ज्येष्ठ कृष्ण, सप्तमी, शुक्रवार, वि० स० २० ७० गत ब्लॉग में .. अंत में भगवान सर्व्गुह्तम आज्ञा देते है – ‘ तू चिन्ता न कर, एकमात्र मेरी शरण आ जा, मैं तुझे सारे पापो से बचा लूँगा |’ ‘ तू मुझमे मन को लगा,मेरा भक्त बन,मेरी पूजा कर,मुझे नमस्कार कर,तू मेरा प्रिय है, इससे मैं तुझसे प्रतिज्ञा करके कहता हूँ की ऐसा करने से तू मुझको ही प्राप्त होगा | सारे धर्मो के आश्रयों को छोडकर तू केवल एक मेरी ही शरण में आ जा | मैं तुझको सब पापो से छुड़ा दूंगा | तू चिन्ता न कर |’ (गीता १८ |६५-६६) इसलिए हमलोगो को नित्य-निरंतर श्रीभगवान का चिन्तन करना चाहिये | भक्तो के और भी अनेको गुण है, कहाँ तक कहा बखाने जाएँ | अन्त में एक-दो बाते कीर्तन के सम्बन्ध में निवेदन करता हूँ | याद रखें, ‘ कीर्तन बाजारी वस्तु नहीं है |’ यह भक्त की परम आदरणीय प्राण-प्रिय वस्तु है | इसलिये कीर्तन करने वाले इतना ध्यान रखे की कही यह बाजारू लोकमनोरंजन की चीज न बन जाये | इसमें कही दिखलाने का भाव न आ जाये | कीर्तन करने वाला भक्त केवल यह समझे की ‘बस, मैं केवल अपने भगवान के स
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