सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सितंबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भगवती शक्ति -11-

|| श्रीहरिः || आज की शुभतिथि-पंचांग आश्विन कृष्ण, एकादशी   श्राद्ध, सोमवार , वि० स० २०७० तन्त्रके नाम पर व्यभिचार और हिंसा गत ब्लॉग से आगे...   व्यभिचार की आज्ञा देने वाले तन्त्रों के अवतरण लेखक ने पढ़े है और तन्त्र के नाम पर व्यभिचार और नर बलि करने वाले मनुष्यों की घ्रणित गाथाये विश्वस्तसूत्रों से सुनी है | ऐसे महान तामसिक कार्यों को शास्त्रसम्मत मान कर भलाईकी इच्छा से इन्हें करना सर्वथा भ्रम है, भारी भूल है और ऐसी भूल में कोई पड़े   हुए हो तो उन्हें तुरन्त ही इससे निकल जाना चाहिये | और जो जान-बूझ कर धर्म के नाम पर व्यभिचार, हिंसा आदि करते हों, उनको तो माँ चंडी का भीषण दण्ड प्राप्त होगा, तभी उनके होश ठीकाने आयेंगे | दयामयी माँ अपनी भूली हुई संतान को क्षमा करे और उन्हें रास्ते पर लावे, यहीं प्रार्थना है |                बलिदान इसके अतिरिक्त पंच्म्कारकके नाम पर भी बड़ा अन्याय-अनाचार हुआ तथा अब भी बहुत जगह हो रहा है, उससे भी सतर्कता से बचना चाहिये | बलिदान तथा मधप्रदान भी सर्वथा त्याज्य है | माता की जो संतान, अपनी भलाइ के लिए – माता से ही अपनी कामना पूरी करने के ल

भगवती शक्ति -10-

|| श्रीहरिः || आज की शुभतिथि-पंचांग आश्विन कृष्ण, दशमी   श्राद्ध, रविवार , वि० स० २०७० शक्ति की शरण तामसी को नरक-प्राप्ति गत ब्लॉग से आगे... तामसी देवता, तामसिक पूजा, तामसिक आचार सभी नरकों में ले जाने वाले है; चाहे उनसे थोड़े काल के लिए सुख मिलता हुआ सा प्रतीत भले ही हों | देवता वस्तुत: तामसिक नहीं होते, पूजक अपनी भावना के अनुसार उन्हें तामसिक बना लेते है | जो देवता अल्प सीमा में आबद्ध हो, जिनको तामसिक वस्तुए प्रिय हों, जो मॉस-मध् आदि से प्रसन्न होते हों, पशु-बली चाहते हों, जिनकी पूजा में तामसिक गंदी वस्तुओं का प्रयोग अवश्यक हों, उनके लिए पूजा करनेवाले को तामसिक अचार की प्रयोजनीयता प्रतीत होती हो; वह   देवता, उनकी पूजा और उन पूजकों का अचार तामसी है और तामसी पापाचारी को बार-बार नरक की प्राप्ति होती होगी, इसमें कोई संदेह नहीं |        तन्त्रके नाम पर व्यभिचार और हिंसा यदपि तन्त्रशास्त्र समस्त श्रेस्ठ साधनशास्त्रों में एक बहुत उत्तम शास्त्र है, उसमे अधिकाँश बाते सर्वथा अभिनंदनीय और साधक को परम सिद्धि -मोक्ष प्रदान कराने वाली है, तथापि सुन्दर बगीचेमें भी जिस प्रका

भगवती शक्ति -9-

|| श्रीहरिः || आज की शुभतिथि-पंचांग आश्विन कृष्ण, नवमी   श्राद्ध, शनिवार , वि० स० २०७० शक्ति की शरण       गत ब्लॉग से आगे.... यह महाशक्ति ही सर्वकारणरूप प्रकृति की आधारभूता होने से महाकारण भी है, यही मायाधीश्वरी है, यही सृजन-पालन-संघारकारिणी आद्या नारायणी शक्ति है और यही प्रकृति के विस्तार के समय भर्ता, भोक्ता और महेश्वर होती है | परा और अपरा दोनों प्रक्रतिया इन्ही की है अथवा यही दो प्रकृतियों के रूप में प्रकाशित होती है | इन्ही में द्वैतअद्वैत दोनों का समावेश है | यही वैष्णवोंकी श्री नारायण और महालक्ष्मी, श्रीराम और सीता, श्रीकृष्ण और राधा; शैवों की श्रीशंकरऔर उमा, गन्पत्योंकी श्रीगणेश और रिद्धि-सिद्धि, सोरो की श्रीसूर्य और उषा, ब्र्ह्वादियों की शुद्ध ब्रह्म और ब्रह्म विद्या है और साक्तों की महादेवी है | यही पन्चमहाविद्या, दस महाविद्या, नव दुर्गा है | यही अन्नपूर्णा, जगादात्री, कात्यायनी, ललिताम्बा है | यही शक्तिमान है, यहीं शक्ति है, यहीं नर है, यहीं नारी है, यही माता धाता, पितामह है; सब कुछ यही है ! सबको सर्वोक्त भाव से इन्ही के शरण में जाना चाहिये |                 

भगवती शक्ति -8-

|| श्रीहरिः || आज की शुभतिथि-पंचांग आश्विन कृष्ण, अष्टमी   श्राद्ध, शुक्रवार , वि० स० २०७० शक्ति की महिमा   गत ब्लॉग से आगे.... यही शूरो का बल है, दानियों की उदारता, माता पिता का वात्सल्य, गुरु की गुरुता, पुत्र और शिष्य की गुरुजन भक्ति, साधुओं की साधुता, चतुरों की चातुरी और मायाविओं की माया है | यही लेखको की लेखनी शक्ति, वाग्मियों की वक्त्रत्वशक्ति, न्यायी नरेशों की प्रजा पालन शक्ति और प्रजा की राजभक्ति है | यह सदाचारियों की दैवी-सम्पति, मुमुक्षुओ की ष्ठशक्ति है, धनवानों की अर्थसम्पति और विद्वानों की विद्यासम्पति है | यही ज्ञानियों की ज्ञानशक्ति, प्रेमियों की प्रेमशक्ति, वैराग्यवानो   की वैराग्यशक्ति और भक्तों की भक्तिशक्ति है | यही राजाओं की राजलक्ष्मी, वणिको की सोभाग्यलक्ष्मी, सज्जनों की शोभालक्ष्मी, और श्रेयार्थियों   की श्री है | यही पतिओं की पत्नीप्रीती और पत्नी की पतिव्रताशक्ति है | सारांश यह है की जगत में तमाम जगह परमात्मरूपा महाशक्ति ही विविध रूपों में खेल रही है | सभी जगह स्वाभिक ही शक्ति की पूजा हो रही है | जहाँ शक्ति नहीं है वाही शून्यता है | शक्तिहीन की कही

भगवती शक्ति -7-

|| श्रीहरिः || आज की शुभतिथि-पंचांग आश्विन कृष्ण, सप्तमी श्राद्ध, गुरूवार , वि० स० २०७० शक्ति और शक्तिमान की अभिन्नता गत ब्लॉग से आगे.... इन्ही सगुण-निर्गुणरूप भगवान या भगवती से उपर्युक्त प्रकार से कभी महादेवी रूप के द्वारा, कभी महाशिव के द्वारा, कभी महाविष्णु के द्वारा, कभी श्रीकृष्ण के द्वारा, कभी श्रीराम के द्वारा सृष्टी की उत्पति होती है, और यही परमात्मरूपा महाशक्ति पुरुष और नारीरूप में विविध अवतारों में प्रगट होती है | वस्तुत: यह नारी हैं न पुरुष, और दूसरी दृष्टी में दोनों ही है | अपने पुरुष रूप अवतारों में स्वयं महाशक्ति ही लीला के लिए उन्ही के अनुसार रूपों में उनकी पत्नी बन जाती है | ऐसे बहुत से इतिहास मिलते है जिनमे महाविष्णु ने लक्ष्मी से, श्रीकृष्ण ने राधा से, श्री सदाशिव ने उमा से और श्रीराम ने सीता से कहा है की हम दोनों सर्वथा अभिन्न है, एकके ही दो रूप है, केवल लीला के लिए एक के दो रूप बन गए है, वस्तुत: हम दोनों में कोई भी अन्तर नहीं है |           शक्ति की उपासना यही आदि के तीन युगल उत्पन्न करने वाली महालक्ष्मी है; इन्ही की शक्ति से ब्रह्मादीदेवता बनत

भगवती शक्ति -6-

|| श्रीहरिः || आज की शुभतिथि-पंचांग आश्विन कृष्ण, षष्ठी श्राद्ध, बुधवार, वि० स० २०७० शक्ति और शक्तिमान   गत ब्लॉग से आगे.... कोई-कोई कहते है की शुद्ध ब्रह्ममें मायाशक्ति नही रह सकती, माया रही तो वह शुद्ध कैसे ? बात समझने की है | शक्ति कभी शक्तिमान से पृथक नहीं रह सकती | यदि शक्ति नहीं है तो उसका उसका शक्तिमान नाम नहीं हो सकता और शक्तिमान न हो तो शक्ति रहे कहाँ ? अतएव शक्ति सदा ही शक्तिमान में रहती है | शक्ति नहीं होती तो सृष्टि के समय शुद्ध ब्रह्म में एक से अनेक होने का संकल्प कहाँ से और कैसे आता है ? इस पर यदि यह कहा जाये की ‘जिस समय संकल्प हुआ, उस समय शक्ति आ गयी,पहले नहीं थी |’ अच्छी बात है ; पर बताओ, वह शक्ति कहाँ से आई ? ब्रह्म के सिवा कहाँ जगह थी जहाँ वह अभ तक छिपी बैठी थी ? इसका क्या उत्तर ?’ ‘अजी, ब्रह्म में कभी संकल्प ही नहीं हुआ, यह सब असत कल्पनाएँ है, मिथ्या स्वप्न-की सी बाते है |’ ‘अच्छी बात है, पर यह मिथ्या स्वप्न की सी बाते है |’ ‘अच्छी बात है, पर मिथ्या कल्पनाये किसने किस शक्ति से की और मिथ्या स्वप्न को किसने किस सामर्थ्य से देखा ? और मान भी लिया जाए क

भगवती शक्ति -5-

|| श्रीहरिः || आज की शुभतिथि-पंचांग आश्विन कृष्ण, पंचमी श्राद्ध, मंगलवार, वि० स० २०७० मायाशक्ति अनिर्वचनीय है गत ब्लॉग से आगे.... कोई-कोई परमात्मरूपा महाशक्ति की इस मायाशक्ति को अनिर्वचनीय कहते है, सो भी ठीक ही है; क्योकि यह शक्ति उस सर्वशक्तिमती महाशक्तिकी अपनी ही तो शक्ति है | जब वह अनिर्वचनीय है, तब उसकी अपनी अनिर्वचनीय क्यों न होगी ? मायाशक्ति और महाशक्ति कोई-कोई कहते है कि इस मायाशक्तिका ही नाम महाशक्ति, प्रकृति, विद्या, अविद्या, ज्ञान, अज्ञान आदि है, महाशक्ति पृथक वस्तु नहीं है | सो उनका यह कथन भी एक दृष्टि से सत्य ही है; क्योकि महाशक्ति परमात्मरूपा महाशक्तिकी ही शक्ति है और वही जीवों के बाधने के लिए अज्ञान या अविद्यारूप से और उनकी बंधन-मुक्ति के लिये ज्ञान या विद्यारूपसे अपना स्वरुप प्रगट करती है, तब इनसे भिन्न कैसे रही? हाँ, जो मायाशक्तिको ही शक्ति मानते वे तो माया के अधिष्ठान ब्रह्म को ही अस्वीकार करते है, इस लिए वे अवश्य ही माया के चक्कर में पड़े हुए है |                                       निर्गुण और सगुण कोई इस परमात्मरूपा महाशक्ति को निर्गुण

भगवती शक्ति -4-

|| श्रीहरिः || आज की शुभतिथि-पंचांग आश्विन कृष्ण, चतुर्थी श्राद्ध, सोमवार, वि० स० २०७० मायावाद गत ब्लॉग से आगे.... और चूँकि संसाररूप से व्यक्त होनेवाली यह समस्त क्रीडा महाशक्तिकी अपनी शक्ति-मायाका ही खेल है और माया-शक्ति उनसे अलग नहीं है, इसलिये यह सारा उन्ही का ऐश्वर्य है | उनको छोड़कर जगत में और कोई वस्तु ही नहीं है, अतएव जगत को मायिक बतलानेवाला मायावाद भी इस हिसाबसे ठीक ही है |                                                              आभासवाद    इस प्रकार महाशक्ति ही अपने मायारूपी दर्पण में अपने विविध श्रंगारों और भावों को देख कर जीवरूप से आप ही मोहित होती है | इससे आभासवाद भी सत्य है | माया अनादी और शान्त है परमात्मरूप महाशक्तिकी उपर्युक्त मायाशक्ति को अनादी और शान्त कहते है | सो उसका अनादी होना तो ठीक ही है; क्योकि वह शक्तिमयी महाशक्तिकी अपनी शक्ति होने से उसी की भांति अनादी है, परन्तु शक्तिमयी महाशक्ति तो नित्य अविनाशिनी है, फिर   उसकी शक्ति माया अंतवाली कैसे होगी? इसका उत्तर यह है की वास्तव में वह अन्तवाली नहीं है | अनादी, अनंत, नित्य, अविनाशी, परमा

भगवती शक्ति -3-

|| श्रीहरिः || आज की शुभतिथि-पंचांग आश्विन कृष्ण, तृतीया श्राद्ध, रविवार, वि० स० २०७० परिणामवाद गत ब्लॉग से आगे.... एक ही शक्ति विभिन्न नाम-रूपों में सृष्टी-रचना करती है | इस विभिन्नता का कारण और रहस्य भी उन्ही को ज्ञात है | यों अनन्त ब्रह्मांडोमें महाशक्ति असंख्य ब्रह्मा, विष्णु, महेश बनी हुई है और अपनी योगमाया से अपने को आवृतकर आप ही जीवसंज्ञा को प्राप्त है | ईश्वर, जीव, जगत तीनो आप ही है | भोक्ता, भोग्य और भोग तीनो आप ही है | इन तीनो को आपने ही से निर्माण करनेवाली, तीनोमें व्याप्त रहने वाली भी आप ही है | परमात्मरूपा यह महाशक्ति स्वयं अपरिणामी   हैं, परन्तु इन्ही की मायाशक्ति से सारे परिणाम होते है | यह स्वभाव से ही सत्ता देकर अपनी मायाशक्ति को क्रीडाशीला अर्थात क्रियाशीला बनाती है, इसलिये इनके शुद्ध विज्ञानानन्दघन नित्य अविनाशी एकरस परमात्मरूप में कदापि कोई परिवर्तन न होनेपर भी इनमे परिणाम दीखता है; क्योकि इनकी अपनी शक्ति मायाका विकसित स्वरुप नित्य क्रीडामय होनेके कारण सदा बदलता ही रहता है और वह मायाशक्ति सदा इन महाशक्ति से अभिन्न रहती है | वह महाशक्तिकी ही स्व-

भगवती शक्ति -2-

|| श्रीहरिः || आज की शुभतिथि-पंचांग आश्विन कृष्ण, द्वितिया श्राद्ध, शनिवार, वि० स० २०७० परिणामवाद गत ब्लॉग से आगे....असल में वह एक महाशक्ति ही परमात्मा है जो विभिन्न रूपों में   विविध लीलाएं करती है | परमात्मा के पुरुषवाचक सभी स्वरुप इन्हीं अनादी, अविनाशिनी, अनिर्वचनीय, सर्वशक्तिमयी, परमेश्वरी आद्या महाशक्ति के ही है | यही महाशक्ति अपनी मायाशक्ति को जब अपने अन्दर छिपाये रखती है, उससे कोई क्रिया नहीं करती, तब निष्क्रिय, शुद्ध ब्रह्म कहलाती है | यही जब उसे विकासोन्मुख करके एकसे अनेक होने का संकल्प करती है, तब स्वयं ही पुरुषरूप से मानो अपनी प्रकर्तिरूप योनी में संकल्प द्वारा चेतनरूप बीज स्थापन करके सगुण, निराकार परमात्मा बन जाती है |   इसीकी अपनी शक्तिसे गर्भाशय में वीर्यस्थापनसे होनेवाले विकार की भांति उस प्रकृति से क्रमश: सात विकृतिया होती है (महतत्व- समष्टि बुद्धि, अहंकार और सूक्ष्म पञ्चतन्मात्राए   मूल प्रकृति के विकार होने से इन्हें विकृति कहते है; परन्तु इनसे अन्य सोलह   विकारों की उत्पति होने के कारण इन सात समुदायों को विकृति भी कहते है ) फिर अहंकार से

भगवती शक्ति -१-

|| श्रीहरिः || आज की शुभतिथि-पंचांग आश्विन कृष्ण, प्रतिपदाश्राद्ध, शुक्रवार, वि० स० २०७०   सर्वोपरि, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी, सर्वाधार, सर्वमय, समस्त-गुणाधार, निर्विकार, नित्य, निरन्जन, सृष्टीकर्ता, पालनकर्ता, संघारकर्ता, विग्यानान्घन, सगुण, निर्गुण, साकार, निराकार, परमात्मा वस्तुत: एक ही है | वे एक ही अनेक भावों से और अनेक रूपों में लीला करते है | हम अपने समझने के लिए मोटे रूपसे उनके आठ रूपों का भेद कर सकते है | (१)नित्य,विज्ञानानन्दघन,निर्गुण, निराकार, मायारहित, एकरस ब्रह्म; (२)सगुण,सनातन,सर्वेश्वर,सर्वशक्तिमान, अव्यक्त निराकार परमात्मा; (३)सृष्टीकर्ता प्रजापति ब्रह्मा; (४) पालनकर्ता भगवान विष्णु; (५) संघारकर्ता भगवान रूद्र; (६)श्रीराम, श्री कृष्ण, दुर्गा, काली आदि साकार रूपों में अवतरित रूप; (७)असंख्य जीवात्मारूप में विभिन्न विभिन्न जीवशरीरों में व्याप्त और (८)विश्व ब्रह्माण्डरूप विराट | यह आठो रूप एक ही परमात्मा के है |    इन्ही समग्ररूप प्रभु को रूचिवैचित्र्यके कारण संसार में लोग ब्रह्म, सदाशिव, महाविष्णु, ब्रह्मा, महाशक्ति, राम, कृष्ण, गणेश, सू

पदरत्नाकर ६८ - केवल तुम्हें पुकारूँ प्रियतम ! देखूँ एक तुम्हारी ओर।

|| श्रीहरिः || आज की शुभतिथि-पंचांग भाद्रपद शुक्ल, पूर्णिमा, गुरूवार, वि० स० २०७०   पदरत्नाकर   ६ ८ - ( राग काफी-ताल दीपचंदी)   केवल तुम्हें पुकारूँ प्रियतम ! देखूँ एक तुम्हारी ओर। अर्पण कर निजको चरणोंमें बैठूँ हो निश्चिन्त , विभोर॥ प्रभो ! एक बस , तुम ही मेरे हो सर्वस्व सर्वसुखसार। प्राणोंके तुम प्राण , आत्माके आत्मा आधेयाऽधार॥ भला-बुरा , सुख-दुःख , शुभाशुभ मैं , न जानता कुछ भी नाथ !। जानो तुम्हीं , करो तुम सब ही , रहो निरन्तर मेरे साथ॥ भूलूँ नहीं कभी तुमको मैं , स्मृति ही हो बस , जीवनसार। आयें नहीं चित-मन-मतिमें कभी दूसरे भाव-विचार॥ एकमात्र तुम बसे रहो नित सारे हृदय-देशको छेक। एक प्रार्थना इह-परमें तुम बने रहो नित सङङ्गी एक॥ — श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी , पदरत्नाकर पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!