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फ़रवरी, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दहेज़-प्रथा और हमारा कर्तव्य

          ।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग फाल्गुन कृष्ण , चतुर्दशी, शुक्रवार, वि० स० २० ७०   दहेज़-प्रथा और हमारा कर्तव्य      मेरी समझ में अपनी कन्या को दहेज़ देना बुरी चीज नहीं है, वरं विवाह का एक आवश्यक अंग है । क्योकि कन्या को इसी रूप में कुछ मिलता है । परन्तु हिन्दू-समाज में इस समय जिस प्रकार से कन्या के पिता को बाध्य होकर दहेज़ देना पड़ता है, वह तो पाप है । पहले से सौदा तय किया जाता है, मोल-तोल होता है और कन्या के पिता से अधिक-से-अधिक लूटने की चेष्टा की जाती है । परिणामस्वरुप लडकियाँ युवती हो जाती है, उनके विवाह नहीं हो पाते एवं यदि विवाह हो भी जाता है तो वर के माता-पिता के द्वारा कन्या को अपने माता-पिता के नाम की गंदी गालियाँ सुननी पड़ती हैं । कन्या के अभिभावको की बड़ी बुरी दशा होती है और उन्हें जीवन भर ऋणी रहना पड़ता है । यह प्रत्यक्ष पाप है । इसको दूर करने का उपाय तो यही है की वरपक्ष वाले दहेज लेना बंद कर दे । कम-से-कम, सयाने लड़कों को इस त्याग के लिए तैयार होना चाहिये और प्रतिज्ञा करनी चाहिये की हम अपना विवाह तभी करवावेंगे, जब दहेज़ नहीं लिया जायेगा ।          

भगवान शिव

।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग फाल्गुन कृष्ण , त्रयोदशी, महाशिवरात्रि व्रत ,   गुरुवार, वि० स० २० ७० भगवान शिव सच्चिन्दनान्द्घन, सर्वान्तर्यामी, सर्वाधार, सर्व्गुन्सम्पन्न, गुणातीत, अनादी, अनन्त भगवान शिव के सम्बन्ध में क्या लिखा जाये । कोई शिव-तत्व के ज्ञाता और शिव के परम भक्त ही शिवतत्व और शिव-स्वरुप पर भगवान शिव की कृपा से कुछ लिख सकते है । तथापि अपनी लेखनी तथा वाणी को पवित्र करने के लिए दो-चार शब्द यहाँ लिखे जा रहे है । गुरुजन क्षमा करेंगे । 1.    भगवान शिव कल्याण स्वरुप, विज्ञानानन्दघन परमात्मा है, वे स्वयं ही अपने ज्ञाता है, अनिर्वचनीय है, अकल है, मन और बुद्धि के अतीत है । 2.    वही अपने शक्ति द्वारा जगत का सूत्रपात करते है, वही ब्रह्मा रूप से   रचते है, विष्णु रूप से पालन करते है और रूद्र रूप से संघार करते है और अनन्त रुद्रों के रूप में जगत में फैले हुए है । वे सब रूपों में भासते है, सब रूपों में प्रगट है । उन्हीं से सबकी उत्पत्ति है, उन्ही में निवास है और उन्हीं में सब लय होते है । यह उत्पत्ति, पालन और विनाश भी उनकी लीलामात्र है । वही सब कुछ है और स

प्रार्थना

।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग फाल्गुन कृष्ण , द्वादशी, बुधवार, वि० स० २० ७० प्रार्थना       हे नाथ ! तुम्हीं सबके स्वामी तुम ही सबके रखवारे हो । तुम ही सब जग में व्याप रहे, विभु ! रूप अनेको धारे हो ।।   तुम ही नभ जल थल अग्नि तुम्ही, तुम सूरज चाँद सितारे हो । यह सभी चराचर है तुममे, तुम ही सबके ध्रुव-तारे हो ।।   हम महामूढ़   अज्ञानी जन, प्रभु ! भवसागर में पूर रहे । नहीं नेक तुम्हारी भक्ति करे, मन मलिन विषय में चूर रहे ।।   सत्संगति में नहि जायँ कभी, खल-संगति में भरपूर रहे ।   सहते दारुण दुःख दिवस रैन, हम सच्चे सुख से दूर रहे ।।   तुम दीनबन्धु जगपावन हो, हम दीन पतित अति भारी है । है नहीं जगत में ठौर कही, हम आये शरण तुम्हारी है ।।   हम पड़े तुम्हारे है दरपर, तुम पर तन मन धन वारी है । अब कष्ट हरो हरी, हे हमरे हम निंदित निपट दुखारी है ।।   इस टूटी फूटी नैय्या को, भवसागर से खेना होगा । फिर निज हाथो से नाथ ! उठाकर, पास बिठा लेना होगा ।।   हा अशरण-शरण-अनाथ-नाथ, अब तो आश्रय देना होगा । हमको निज चरणों का न

माधव ! मुझको भी तुम अपनी सखी बना लो, रख लो संग।

।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग फाल्गुन कृष्ण , एकादशी, मंगलवार, वि० स० २० ७०         माधव ! मुझको भी तुम अपनी सखी बना लो , रख लो संग। ( राग जंगला-ताल कहरवा) माधव ! मुझको भी तुम अपनी सखी बना लो , रख लो संग। खूअ रिझान्नँगी मैं तुमको , रचकर नये-नये नित ढंग॥ नाचूँगी , गाऊं गी , मैं फिर खूब मचान्नँगी हुड़दंग। खूब हँसान्नँगी हँस-हँस मैं , दिखा-दिखा नित तूतन रंग॥ धातु-चित्र पुष्पों-पत्रोंसे खूब सजान्नँगी सब अङङ्ग- मधुर तुम्हारे , देख-देख रह जायेगी ये सारी दंग॥ सेवा सदा करूँगी मनकी , भर मनमें उत्साह-‌उमंग। आनँदके मधु झटकेसे सब होंगी कष्टस्न-कल्पना भङङ्गस्न॥ तुम्हें पिलान्नँगी मीठा रस , स्वयं रहँूगी सदा असङङ्गस्न। तुमसे किसी वस्तु लेनेका , आयेगा न कदापि प्रसङङ्गस्न॥ प्यार तुम्हारा भरे हृदयमें , उठती रहें अनन्त तरंग। इसके सिवा माँगकर कुछ भी , कभी करूँगी तुम्हें न तंग॥ — श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी , पद-रत्नाकर पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     

वशीकरण -९-

।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग माघ शुक्ल, षष्ठी, बुधवार, वि० स० २० ७० वशीकरण   -९- द्रौपदी-सत्यभामा-संवाद   गत ब्लॉग से आगे ....जो लोग तुम्हारे स्वामी के प्रेमी है, हितेषी है और सदा अनुराग रखते है उनको विविध प्रकार से भोजन कराना चाहिये और जो तुम्हारे पति के शत्रु हो, विपक्षी हो, बुराई करने वाले हो और कपटी हो उनसे सदा बची रहों । पर पुरुष के सामने मद और प्रमाद को छोड़कर सावधान और मौन रहन चाहिये और एकान्त में अपने कुमार साम्ब और प्रद्युम्न   के साथ भी कभी न बैठना चाहिये ।   सत्कुल में उत्पन्न होने वाली पुण्यवती पतिव्रता सती स्त्रियों के साथ मित्रता करना, परन्तु क्रूर स्वभाव वाली, दूसरों का अपमान करने वाली, बहुत खाने वाली, चटोरी, चोरी करने वाली, दुष्ट स्वभाव वाली और चंचल चित वाली स्त्रियों के साथ मित्रता (बहनेपा) कभी न करनी चाहिये । (महाभारत, वनपर्व अ० २३४) ‘तुम बहुमूल्य उत्तम माला और गहनों को धारण करके सदा स्वामी की सेवा में लगी रहो । इस प्रकार के उत्तम आचरणों में लगी रहने से तुम्हारे शत्रुओं का नाश होगा, परम सोभाग्य की वृद्धि होगी, स्वर्ग की प्राप्ति होगी औ

वशीकरण -८-

।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग माघ शुक्ल, पंचमी, मंगलवार, वि० स० २० ७० वशीकरण   -८- द्रौपदी-सत्यभामा-संवाद     गत ब्लॉग से आगे ....द्रौपदी फिर कहने लगी-‘हे सखी ! पति का चित खीचने का एक कभी   खाली न जानेवाला एक उपाय बतलाती हूँ । इस उपाय को काम में लाने से तुम्हारे स्वामी का चित सब तरफ से हटकर केवल तुम्हारे में ही लग जायेगा ।   हे सत्यभामा ! स्त्रियों के लिए पति ही परम देवता है, पति के समान और कोई भी देवता नही है । जिसके प्रसन्न होने से स्त्रियों के सब मनोरथ सफल होते है और जिसके नाराज़ होने से सब सुख नष्ट हो जाते है ।   पति को प्रसन्न करके ही स्त्री, पुत्र, नाना प्रकार के सुखभोग, उत्तम शय्या, सुन्दर आसन, वस्त्र, पुष्प, गन्ध, माला, स्वर्ग, पुण्यलोक और महान कीर्ति को प्राप्त करती है । सुख सहज में नही मिलता, पतिव्रता स्त्री पहले दुःख झेलती है तब उसे सुख मिलता है । अतएवतुम भी प्रतिदिन सच्चे प्रेम से सुंदर वस्त्राभूषण, भोजन, गन्ध, पुष्प आदि प्रदान कर श्रीकृष्ण की आराधना करों । जब वे यह समझ जायेंगे की मैं सत्यभामा के लिए परम प्रिय हूँ, तब वे तुम्हारे वश में हो जाय

वशीकरण -७-

।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग माघ शुक्ल, चतुर्थी, सोमवार, वि० स० २० ७०                                  वशीकरण   -७- द्रौपदी-सत्यभामा-संवाद   गत ब्लॉग से आगे ....हे कल्याणी ! हे यशस्विनी   सत्यभामा ! जब भरतकुल में श्रेष्ठ पाण्डव घर-परिवार का सारा भार मुझ पर छोड़कर उपासना में लगे रहते थे तब मैं सब तरह से आराम को छोड़ कर रात-दिन दुष्टमन की स्त्रियों के न उठा सकने लायक कठिन कार्य के सारे भार को उठाये रखती थी । जिसदिन मेरे पति उपासनादी कार्य में तत्पर रहते उस समय वरुणदेवता के खजाने महासागर के समान असंख्य धन के खजानों की देख-भाल में अकेली ही करती । इ स प्रकार भूख-प्यास भुलाकर लगातार काम में लगी रहने के कारण मुझे रात-दिन की सुधि भी न रहती थी । मैं सबके सोने के बाद सोती और सबके उठने से पहले जाग उठती थी और निरन्तर सत्य-व्यवहार में लगी रहती । यही मेरा वशीकरण है । हे सत्यभामा ! पति को वश में करने का सबसे अच्छा महान वशीकरण मन्त्र मैं जानती हूँ । दुराचारिणी स्त्रियों के दुराचारों को मैं न तो ग्रहण ही करती हूँ और न कभी उसकी मेरी इच्छा ही होती है ।   द्रौपदी के द्वारा

वशीकरण -६-

।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग माघ शुक्ल, तृतीया, रविवार, वि० स० २० ७० वशीकरण   -६- द्रौपदी-सत्यभामा-संवाद   गत ब्लॉग से आगे ....मेरे पति महाराज युधिष्ठर के महल में पहले प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों और हजारों स्नातक सोने के पात्रों में भोजन किया करते और रहते । हजारों दासियाँ उनकी सेवा में रहती । दुसरे दस हज़ार आजन्म ब्रह्मचारियों को सोने के थालों मेंउत्तम उत्तम भोजन परोसे जाते थे । वैश्वदेव होने के अनन्तर मैं उन सब ब्राह्मणों को नित्य अन्न, जल और वस्त्रों से यथायोग्य सत्कार करती थी । महात्मा युधिष्ठर के एक लाख नृत्य-गीतविशारदा वस्त्राभूषणों से अलंकृत दासियाँ थीं । उन सब दासियों के नाम, रूप और प्रत्येक काम के करने-न-करने का मुझे सब पता रहता था और मैं उनके खाने-पीने और कपडे-लत्ते की व्यवस्था किया करती थी । महान बुद्धिमान महाराज युधिष्ठर की वे सब दासियाँ दिन-रात सोने के थाल लिए अतिथियों को भोजन कराने के काम में लगी रहती थी । जब महाराज नगर में रहते थे तब एक लाख हाथी और एल लाख घोड़े उनके साथ चलते थे, यह सब विषय धर्मराज युधिष्ठर के राज्य करने के समय था ।   मैं

वशीकरण -५-

।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग माघ शुक्ल, द्वितीया, शनिवार, वि० स० २० ७० वशीकरण   -५- द्रौपदी-सत्यभामा-संवाद   गत ब्लॉग से आगे ....मेरी भलीसास ने कुटुम्ब के साथ कैसा वर्ताव करना चाहिये, इस विषय में मुझको जिस धर्म का उपदेश दिया था, उसको तथा भिक्षा, बलिविश्व, श्राद्ध, पर्व के समय बनने वाले स्थालीपाक, मानी पुरुषों की पूजा और सत्कार आदि जो धर्म मेरे जानने में आये है, उन सबको मैं रात-दिन सावधानी के साथ पालती हूँ और एकाग्रचित से सदा विनय और नियमों का पालन करती हुई अपने कोमल-चित, सरल-स्वभाव, सत्यवादी, धर्मपालक पतियों के सेवा करने में उसी प्रकार सावधान रहती हूँ जैसे क्रोधयुक्त साँपों से मनुष्य सावधान रहते है ।   हे कल्याणी ! मेरे मत से पति के आश्रित रहना ही स्त्रियों का सनातनधर्म है । पति ही स्त्री का देवता और उसकी एकमात्र गति है । अतएव पति का अप्रिय करना बहुत ही अनुचित है । मैं पतियों से पहले न कभी सोती हूँ, न भोजन करती हूँ और न उनकी इच्छा के विरुद्ध गहना-कपडा ही पहनती हूँ । कभी भूलकर भी अपनी सास की निन्दा नहीं करती । सदा नियमानुसार चलती हूँ । हे सोभाग्यवती ! म