अब आगे......... यह अवश्य ही बड़ी मनोहर बात है कि भगवान् में परस्पर-विरोधी गुण-धर्म युगपत रहते हैं, जो भगवान् की भगवत्ता का एक लक्षण माना जाता है और यह कहा जाता है कि जिसमें परस्पर-विरोधी गुण-धर्म एक साथ, एक समय में रहें, वह भगवान् है l जहाँ गर्मी है, वहाँ सर्दी नहीं है; जहाँ दुःख है, वहाँ सुख नहीं है , जहाँ मिलन है, वहाँ अमिलन नहीं है और जहाँ भाव है, वहाँ अभाव नहीं है l इस प्रकार दो विरोधी वस्तु जगत में एक साथ एक समय नहीं रहतीं l यह नियम है l परन्तु भगवान् ऐसे विलक्षण हैं - वे अणु-से-अणु भी हैं और उसी समय वे महान-से-महान भी हैं l 'वे चलते हैं और नहीं भी चलते, वे दूर हैं और पास भी हैं l ' वे एक ही समय निर्गुण भी हैं, उसी समय वे सगुण भी हैं l वे निराकार हैं, उसी समय वे साकार भी हैं l उनमें युगपत-एक साथ परस्पर-विरोधी गुण-धर्म रहते हैं l और जिस प्रकार भगवान् में परस्पर-विरोधी गुण-धर्म एक साथ निवास करते हैं, उसी प्रकार वे परस्पर-विरोधी गुण-धर्म भगवत्प्रेम में , भगवत्प्रेम कि साधना में भी एक साथ रहते हैं l वहाँ प्रेम-साधना में और प्रेमोदय के पश्चात् भी हँ
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