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नवंबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रार्थना -१-

।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग मार्गशीर्ष कृष्ण, द्वादशी, शनिवार, वि० स० २०७०     प्रार्थना -१- हे प्रभो ! मैं अधम हूँ, नीच हूँ, पामर हूँ, पापों की कालिमा से कलंकित हूँ । इतना सब होते हुए भी हूँ तो तुम्हारा ही न ? इस सत्य को, हे सत्य ! तुम अस्वीकार नहीं कर सकते । बस, इसी सत्य के आधार पर मैं तुम्हे यह प्रार्थना करता हूँ की तुम मेरे मन को ऐसा बना दो जिसमे वह इस सत्य को सदा स्मरण रखे । क्या इस पतितकी, हे पतितपावन ! इंतनी विनती भी नहीं सुनोगे ?   * * * * * * * * * हे प्रभो ! मैं तुमसे विमुख हूँ, संसार के जाल में फसा हूँ, भूलकर भी कभी तुम्हारी और चित नहीं लगाता । परन्तु हे विश्वरूप ! मेरे लीलामय ! यह तो सत्य ही है की सब कुछ तुम्ही हो, फिर चाहे मैं किसी और देखूँ, किसी और जाऊँ, किसी में मन लगाऊँ, तुम्ही को तो देखता हूँ, तुम्हारी और ही तो जाता हूँ, तुम्ही में तो मन लगाता हूँ । बस, यही प्रार्थना है की इस समझ को प्रतिक्षण मेरे ह्रदय में जगाये रखो मेरे स्वामी !... शेष अगले ब्लॉग में . — श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी , प्रार्थना पुस्तक से, पुस्तक

भगवान् की उपासना का यथार्थ स्वरुप -२-

।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग मार्गशीर्ष कृष्ण, एकादशी, शुक्रवार, वि० स० २०७० भगवान् की उपासना का यथार्थ स्वरुप -२- गत ब्लॉग से आगे ... याद रखो - तुम्हें मन मिला है सारी वासना-कामनाओंके जालसे मुक्त होकर समस्त जागतिक स्फुरनाओंको समाप्तकर भगवान् के रूप-गुण-तत्त्वका मनन करनेके लिए और बुद्धि मिली है – निश्चयात्मिका होकर भगवान् में लगी रहने के लिए । यही मन-बुद्धिका समर्पण है । भगवान् यही चाहते हैं । इसलिए मनके द्वारा निरंतर अनन्य चित्तसे भगवान् का चिंतन करो और बुद्धिको एकनिष्ठ अव्यभिचारिणी बनाकर निरन्तर भगवान् में लगाए रखो । यह भी भगवान् के समीप बैठनेकी एक उपासना है ।   याद रखो - तुम्हें शरीर मिला है भगवद-भावसे गुरुजनोंकी, रोगियोंकी, असमर्थोंकी आदर-पूर्वक सेवा-टहल करनेके लिए, देवता-द्विज-गुरु-प्राज्ञके पूजनके लिए, पीड़ितकी रक्षाके लिए और सबको सुख पहुँचानेके लिए । अतएव शरीरको संयमित रखते हुए शरीरके द्वारा यथा-योग्य सबकी सेवा-चाकरी-रक्षा आदिका कार्य संपन्न करते रहो । यह भी भगवान् के समीप बैठनेकी एक उपासना है ।   याद रखो - तुम्हें मनुष्य-जीवन मिल

भगवान् की उपासनाका यथार्थ स्वरुप -१-

।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग मार्गशीर्ष कृष्ण, दशमी, गुरूवार, वि० स० २०७० भगवान् की उपासनाका यथार्थ स्वरुप -१- गत ब्लॉग से आगे ... १२. याद रखो - समस्त विश्वके सम्पूर्ण प्राणी भगवत-स्वरुप हैं, यह जानकार सबको बाहरकी स्थितिके अनुसार हाथ जोड़कर प्रणाम करो या मनसे भक्ति-पूर्वक नमन करो । किसीभी प्राणीसे कभी द्वेष मत रखो । किसीको भी कटु वचन मत कहो, किसीका भी मन मत दुखाओ और सबके साथ आदर, प्रेम तथा विनयसे बरतो । यह भगवान् के समीप बैठने की एक उपासना है ।   याद रखो - तुम्हारे पास विद्या-बुद्धि, अन्न-धन, विभूति-संपत्ति है – सब भगवानकी सेवाके लिए ही तुम्हें मिली है । उनके द्वारा तुम गरीब-दुखी, पीड़ित-रोगी, साधू-ब्राह्मण, विधवा-विद्यार्थी, भय-विषादसे ग्रस्त मनुष्य, पशु, पक्षी, चींटी – सबकी यथायोग्य सेवा करो – उन्हें भगवान् समझकर निरभिमान होकर उनकी वास्तु उनको सादर समर्पित करते रहो । यह भी भगवान् के समीप बैठनेकी एक उपासना है ।   याद रखो - तुम्हें जीभ मिली है – भगवान् का दिव्य मधुर नाम-गुण-गान-कीर्तन करनेके लिए और कान मिले हैं – भगवान् का मधुर नाम-गुण-गान-कीर्

एक ही परमात्माकी अनंत रूपोंमें अभिव्यक्ति -२-

।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग मार्गशीर्ष कृष्ण, नवमी, बुधवार, वि० स० २०७०   एक ही परमात्माकी अनंत रूपोंमें अभिव्यक्ति -२- गत ब्लॉग से आगे ... याद रखो - जैसे एक ही सूर्य समस्त लोकोंको प्रकाशित करता है, उसी का प्रकाश प्राणिमात्रके नेत्रोंमें प्रकाश देता है और प्राणिमात्र उन्हीं नेत्रोंसे विभिन्न प्रकारके बाहरी दोषोंमें लिप्त होते हैं – गुण-दोषमय वस्तुओंको देखते हैं । प्राणी नेत्रोंकी सहायतासे विभिन्न प्रकारके गुण-दोषमय कार्य करते हैं, पर उन सबका प्रकाशक वह सूर्य जैसे किसीके उन गुण-दोषोंसे लिप्त नहीं होता, वैसे ही समस्त प्राणियोंके अन्तरात्मा परमात्मा (उन परमात्माकी ही शक्ति-सत्तासे क्रियाशील होकर मन-बुद्धि-इन्द्रियोंके द्वारा ) प्राणी अनंत प्रकारके जो शुभाशुभ जो कर्म करते हैं, उन क्रूर कर्मोंसे एवं उनके फल-रूप सुख-दुखसे लिप्त नहीं होते । वे सबमें रहते हुए ही सबसे पृथक तथा सर्वथा असंग रहते हैं ।   याद रखो - ऐसे वे परमात्मा सदा ही सबके अन्तरात्मा हैं, एक अद्वितीय हैं । सबको सदा अपने वशमें रखते हैं । वे एक ही अपने रूपको अपनी लीला से बहुत प्रकारका बनाए

एक ही परमात्माकी अनंत रूपोंमें अभिव्यक्ति -१-

।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग मार्गशीर्ष कृष्ण, अष्टमी, मंगलवार, वि० स० २०७०   एक ही परमात्माकी अनंत रूपोंमें अभिव्यक्ति -१- गत ब्लॉग से आगे ... ११. याद रखो - परमात्मा एक है और वही अनंत रूपोंमें अभिव्यक्त है । जब तक उन परमात्माका बाहर-भीतर, सर्वत्र-सदा साक्षात्कार नहीं होता, तब तक कभी भी सदा रहनेवाली वास्तविक सुख-शान्ति नहीं मिल सकती ।   याद रखो - जैसे एक ही अग्नि अव्यक्त रूपसे समस्त ब्रह्माण्डमें व्याप्त है, उसमें कहीं कोई भेद नहीं है, पर जब वह किसी आधार-वस्तुमें व्यक्त होकर प्रज्वलित होती है, तब वह उसी वस्तुके आकारका दृष्टिगोचर होने लगती है; वैसे ही समस्त प्राणियोंके अंतर-आत्मा रूपमें विराजित अन्तर्यामी परमात्मा सबमें समभावसे व्याप्त हैं; उनमें कहीं कोई भेद नहीं है, तथापि वे एक होते हुए ही उन-उन प्राणियोंके अनुरूप विभिन्न रूपोंमें दिखाई देते हैं । पर वे उतने ही नहीं हैं, उन सबके बाहर भी अनंत रूपोंमें स्थित हैं ।   याद रखो - जैसे एक ही अव्यक्त रूपसे समस्त ब्रह्माण्डमें व्याप्त है, उसमें कोई भेद नहीं है; परन्तु व्यक्त होकर विभिन्न वस्तुओंके

परदोष-दर्शन तथा पर-निंदासे हानि -२-

।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग मार्गशीर्ष कृष्ण, सप्तमी, सोमवार, वि० स० २०७०   परदोष-दर्शन तथा पर-निंदासे हानि -२- गत ब्लॉग से आगे ... याद रखो - जिस मानव जीवनमें मनुष्य सबका हित करके मन-वाणी से सबको सुख पहुंचाकर भगवानके सन्मार्ग पर चलता है और जगतमें दैवी सम्पदाका विकास करता तथा अन्तमें भजन में लगकर भगवत-प्राप्ति कर लेता – उस दुर्लभ मानव-जीवन को परदोष-दर्शन तथा पर-निन्दामें तथा अपनी मिथ्या प्रशंसा में लगाकर अपने जीवन को तथा दूसरोंके जीवनको भी इस लोक तथा परलोकमें नरक-यंत्रणा-भोगका भागी बना देना – कितना बड़ा प्रमाद और पाप है ! इससे बड़ी सावधानी के साथ सबको बचना चाहिए । याद रखो - मनुष्य का परम कर्तव्य है – भगवानके गुणोंका, उनके नामका, उनकी लीला का श्रवण, कथन तथा कीर्तन एवं स्मरण करनेमें ही जीवन को लगाना । बुद्धिमान मनुष्यको तो दूसरोंके न तो गुण-दोषका चिंतन करना चाहिए, न देखना चाहिए और न उनका वर्णन ही करना चाहिए । उसे तो भगवद-गुण चिंतनसे ही समय नहीं मिलना चाहिए । पर यदि देखे बिना न रहा जाए तो दूसरोंके गुण देखने चाहिए और ढूँढ-ढूँढकर अपने दोष देखने चाहिए ।

परदोष-दर्शन तथा पर-निंदासे हानि -१-

।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग मार्गशीर्ष कृष्ण, सप्तमी, रविवार, वि० स० २०७० परदोष-दर्शन तथा पर-निंदासे हानि -१- गत ब्लॉग से आगे ...१०. याद रखो - मनुष्यमें एक बड़ी मानसिक दुर्बलता यह है की वह अपनी प्रशंसा सुनकर और दूसरोंकी निंदा सुनकर प्रसन्न होता है ।   अपनी प्रशंसामें और परनिंदामें उसे निरंतर बढ़नेवाली एक ऐसी मिठास आने लगती है की वह कभी अघाता ही नहीं और फिर स्वयं ही अपनी प्रशंसा और दूसरों की निंदा करने लगता है । याद रखो - जगत में गुण-दोष भरे हैं, पर जिसकी वृत्ति दोष देखने की हो जाती है, उसे पर-दोषों को ढूँढ-ढूँढकर देखने तथा उनका बढ़ा-चढ़ाकर बखान करनेमें रस आने लगता है । यह बहुत बुरी वृत्ति होती है । इस वृत्तिके हो जानेपर पर-दोष देखना और पर-निंदा करना ही उसका प्रधान कार्य हो जाता है । फिर, वह जैसे अपने अति आवश्यक कामको मन लगाकर तथा विभिन्न साधानोंसे संपन्न करना चाहता है, वैसेही पर-दोष दर्शन तथा पर-निंदामें अपने तमाम साधनों को लगा देता है । यही उसका स्वभाव बन जाता है ।   याद रखो - जिसका दोष देखनेका स्वभाव हो जाता है, उसकी आँखें बदल जाती है, उस

संतका संग एवं सेवन करें -३-

।। श्रीहरिः ।। आज की शुभतिथि-पंचांग मार्गशीर्ष कृष्ण, षष्ठी, शनिवार, वि० स० २०७० संतका संग एवं सेवन करें -३- गत ब्लॉग से आगे ... याद रखो - उपर्युक्त लक्षण जीवनमें प्रकट होने लगें तो समझो की वास्तवमें ही संतका संग तथा सेवन हो रहा है । जैसे सूर्यके उदय होनेपर प्रकाश का होना अनिवार्य तथा स्वयं-सिद्ध प्रत्यक्ष है, वैसे ही संतके संग तथा सेवन से उपर्युक्त भावों तथा गुणों का प्रकाश अनिवार्य, स्वयंसिद्ध तथा प्रत्यक्ष होता है ।   याद रखो - संतका संग और सेवन करनेपर भी यदि उपर्युक्त लक्षणोंका उदय न होकर उसके विपरीत आसुरी संपत्ति का विकास तथा विस्तार, भोगोंमें तथा पापोंमें रूचि, शास्त्र-निषिद्ध कर्मोंमें राग, पर-अहित में प्रसन्नता, विषय-चिंतन आदि होते हैं तो समझना चाहिए की या तो जिनको संत माना गया है, वे संत नहीं है अथवा उनका संग और सेवन न करके उनके नामपर विषय-संग तथा विषय-सेवन ही किया जा रहा है; भगवत-प्राप्तिका उद्देश्य ही नहीं है । .. .. शेष अगले ब्लॉग में .           — श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी , परमार्थ की मन्दाकिनीं , कल्याण कुञ्ज भाग – ७ ,   प