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पदरत्नाकर

[ ७२ ] राग जोगिया — ताल आड़ा चौताल ‘ भोगोंमें सुख है ’— इस भारी भ्रमको हर लो , हे हरि!   सत्वर। तुरत मिटा दो दु:खद सुखकी आशाओंको , हे करुणाकर!  ॥ मधुर तुम्हारे रूप-नाम-गुणकी स्मृति होती रहे निरन्तर। देखूँ सदा , सभीमें तुमको , कभी न भूलूँ तुमको पलभर॥ ममता एक तुम्हींमें हो , हो तुममें ही आसक्ति-प्रीति वर। बँधा रहे मन प्रेमरज्जुसे चारु चरण-कमलोंमें , नटवर!  ॥ दिखता रहे मधुर-मनहर मुख कोटि-कोटि शरदिन्दु-सुखाकर। सुनूँ सदा मधुरातिमधुर मुनि-मन-उन्मादिनि मुरलीके स्वर॥ तन-मनके प्रत्येक कार्यसे पूजूँ तुम्हें सदा , हृदयेश्वर। सहज सुहृद उदारचूड़ामणि!   दीन-हीन मुझको दो यह वर॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ७१ ] राग गूजरी — तीन ताल जो चाहो तुम , जैसे चाहो , करो वही तुम , उसी प्रकार। बरतो नित निर्बाध सदा तुम मुझको अपने मन-अनुसार॥ मुझे नहीं हो कभी , किसी भी , तनिक दु:ख-सुखका कुछ भान। सदा परम सुख मिले तुम्हारे मनकी सारी होती जान॥ भला-बुरा सब भला सदा ही ; जो तुम सोचो , करो विधान। वही उच्चतम , मधुर-मनोहर , हितकर परम तुम्हारा दान॥ कभी न मनमें उठे , किसी भी भाँति , कहीं , कैसी भी चाह। उठे कदाचित् तो प्रभु उसे न करना पूरी , कर परवाह॥ प्यारे!  यही प्रार्थना मेरी , यही नित्य चरणोंमें माँग — मिटे सभी ‘ मैं-मेरा ’, बढ़ता रहे सतत अनन्य अनुराग॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ७०] राग तोड़ी — तीन ताल मेरी शक्ति थक गयी सारी , उद्यम-बलने मानी हार। हुआ चूर पुरुषार्थ-गर्व सब , निकली बरबस करुण पुकार॥ शक्तिमान हे!  शक्ति-स्रोत हे!  करुणामय!  हे परम उदार। शक्तिदान दे कर लो मुझको यन्त्र-रूपमें अङ्गीकार॥ हरो सभी तम तुरत , सूर्य-सम करो दिव्य आभा विस्तार। जो चाहो सो करो , नित्य निश्शङ्क निजेच्छाके अनुसार॥ कहीं डुबा रक्खो कैसे ही , अथवा ले जाओ उस पार। अथवा मध्य-हिंडोलेपर ही , रहो झुलाते बारंबार॥ भोग्य बना भोक्ता बन जाओ , भर्ता बनो भले सरकार। बचे न ‘ ननु नच ’ कहनेवाला , मिटें अहंके क्षुद्र विकार॥ कौन प्रार्थना करे , किस तरह , किसकी , फिर , हे सर्वाधार! । सर्व बने तुम अपनेमें ही करो सदा स्वच्छन्द विहार॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ६९ ] राग भैरवी — तीन ताल कहाँ तुच्छ सब , कहाँ महत् तुम , पर यह कैसा अनुपम भाव। बने प्रेमके भूखे , सबसे प्रेम चाहते , करते चाव॥ धन देते , यश देते , देते ज्ञान-शक्ति-बल , देते मान। किसी तरह सब तुम्हें , ‘ प्रेम ’ दें इसीलिये सब करते दान॥ लेते छीन सभी कुछ , देते घृणा-विपत्ति , अयश-अपमान। करते निष्ठुर चोट , चाहते —‘ तुम्हें प्रेम सब दें ’, भगवान॥ सभी ईश्वरोंके ईश्वर तुम बने विलक्षण भिक्षु महान। उच्च-नीच सबसे ही तुम नित प्रेम चाहते प्रेम-निधान॥ अनुपम , अतुल , अनोखी कैसी अजब तुम्हारी है यह चाह!  । रस-समुद्र , रसके प्यासे बन , रस लेते मन भर उत्साह॥ रस उँड़ेल , रस भर , तुम करते स्वयं उसी रसका मधु-पान। धन्य तुम्हारी रस-लिप्सा यह , धन्य तुम्हारा रस-विज्ञान॥ यही प्रार्थना , प्रेम-भिखारी!   प्रेम-रसार्णव!   तुमसे आज। दान-पानकी मधुमय लीला करते रहो , रसिक रसराज!  ॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ६८ ] राग काफी — ताल दीपचंदी केवल तुम्हें पुकारूँ प्रियतम!   देखूँ एक तुम्हारी ओर। अर्पण कर निजको चरणोंमें बैठूँ हो निश्चिन्त , विभोर॥ प्रभो!   एक बस , तुम ही मेरे हो सर्वस्व सर्वसुखसार। प्राणोंके तुम प्राण , आत्माके आत्मा आधेयाऽधार॥ भला-बुरा , सुख-दु:ख , शुभाशुभ मैं , न जानता कुछ भी नाथ!  । जानो तुम्हीं , करो तुम सब ही , रहो निरन्तर मेरे साथ॥ भूलूँ नहीं कभी तुमको मैं , स्मृति ही हो बस , जीवनसार। आयें नहीं चित्त-मन-मतिमें कभी दूसरे भाव-विचार॥ एकमात्र तुम बसे रहो नित सारे हृदय-देशको छेक। एक प्रार्थना इह-परमें तुम बने रहो नित सङ्गी एक॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ६७ ] राग जौनपुरी — तीन ताल सबमें सब देखें निज आत्मा , सबमें सब देखें भगवान। सब ही सबका सुख-हित देखें , सबका सब , चाहें कल्यान॥ एक दूसरेके हितमें सब करें परस्पर निज-हित-त्याग। रक्षा करें पराधिकारकी , छोड़ें स्वाधिकारकी माँग॥ निकल संकुचित सीमासे ‘ स्व ’ करे विश्वमें निज विस्तार। अखिल विश्वके हितमें ही हो ‘ स्वार्थ ’ शब्दका शुभ संचार॥ द्वेष-वैर-हिंसा विनष्टहों , मिटें सभी मिथ्या अभिमान। त्याग-भूमिपर शुद्ध प्रेमका करें सभी आदान-प्रदान॥ आधि-व्याधिसे सभी मुक्त हों , पायें सभी परम सुख-शान्ति। भगवद्भाव उदय हो सबमें , मिटे भोग-सुखकी विभ्रान्ति॥ परम दयामय!   परम प्रेममय!   यही प्रार्थना बारंबार। पायें सभी तुम्हारा दुर्लभ चरणाश्रय , हे परम उदार!  ॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ६६ ] राग बिहाग — तीन ताल करुणामय!  उदार चूड़ामणि!  प्रभु!  मुझको यह दो वरदान। देखूँ तुम्हें सभीमें , सभी अवस्थाओंमें हे भगवान॥ शब्द मात्रमें सुन पाऊँ मैं नित्य तुम्हारा ही गुण-गान। वाणीसे गाऊँ मैं गुणगण , नाम तुम्हारे ही रसखान॥ इन्द्रिय सभी सदा पुलकित हों पाकर मधुर तुम्हारा स्पर्श। कर्म नित्य सब करें तुम्हारी ही सेवा , पावें उत्कर्ष॥ बुद्धि , चित्त , मन रहें सदा ही एक तुम्हारी स्मृतिमें लीन। कभी न हो पाये विचार-संकल्प-मनन , प्रभु!   तुमसे हीन॥ सदा तुम्हारी ही सेवामें सब कुछ रहे सदा संलग्न। यही प्रार्थना — रहूँ तुम्हारे पद-रति-रसमें नित्य निमग्न॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ६५ ] राग भिन्नषड्‍ज — तीन ताल प्रभो!   मिटा दो मेरा सारा , सभी तरहका मद-अभिमान। झुक जाये सिर प्राणिमात्रके चरणोंमें , तुमको पहचान॥ आचण्डाल , शृगाल , श्वान भी हों मेरे आदरके पात्र। सबमें सदा देख पाऊँ मैं मृदु मुसकाते तुमको मात्र॥ सबका सुख-सम्मान परम हित ही हो , मेरी केवल चाह। भूलूँ अपनेको सब विधि मैं , रहे न तनकी सुधि-परवाह॥ पूजूँ सदा सभीमें तुमको यथायोग्य कर सेवा-मान। बढ़ती रहे वृत्ति सेवाकी , बढ़ती रहे शक्ति-निर्मान॥ परका दु:ख बने मेरा दुख , सुखपर हो परका अधिकार। बन जाये निज हित पर-हित ही , सुखकी हो अनुभूति अपार॥ आर्त प्राणियोंको दे पाऊँ सदा सान्त्वना-सुखका दान। उनके दु:ख-नाशमें कर पाऊँ मैं समुद आत्म-बलिदान॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ६४ ] राग भूपालतोड़ी — तीन ताल बन जाओ तुम मेरे सब कुछ जप-तप , ध्यान , ज्ञान-विज्ञान। बन जाओ तुम मेरे साधन-साध्य , यज्ञ-व्रत , संयम-दान॥ बन जाओ तुम मेरे शम-दम , श्रद्धा , समाधान , शुचि योग। बन जाओ तुम मेरे मन-मति , अहंकार , इन्द्रिय , सब भोग॥ बन जाओ तुम मेरे प्राणोंके रहस्य , जीवनके मर्म। बन जाओ तुम मेरे वस्त्राभूषण , खान-पान गृह-धर्म॥ स्पर्श तुम्हारा मिले सर्वदा सबमें , सभी ठौर अविराम। मेरे तुम हो , मेरे तुम हो , सभी भाँति , हे प्राणाराम!  ॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ६३ ] राग जोग — ताल दीपचंदी बिना याचनाके ही देते रहते नित्य शक्ति तुम नाथ!  करते सदा सँभाल , छिपे तुम अविरत रहते मेरे साथ॥ देते तुम निर्भयता , नित्य निरामयता , निज आश्रय-दान। देते शुभ विचार , शुभ चिन्तन , शुभ जीवन , शुभ कर्म महान॥ देते प्रेम प्रेम-सागर!   तुम देते स्वार्थहीन अनुराग। देते सुख शाश्वत आत्यन्तिक मिटा सभी दु:खोंके दाग॥ एक चाहते , इन सबके बदलेमें तुम — अविचल विश्वास। पर मैं हीन उसीसे , तब भी होता नहीं कदापि निराश॥ तुम्हीं मुझे विश्वास-दान दो , तुम्हीं करो मेरा उद्धार। ख्यात पतित-पावन , पामर-प्रेमी तुम , हे प्रभु!   परम उदार॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ६१ ] राग भीमपलासी — ताल मूल करो प्रभु!   ऐसी दृष्टि - प्रदान। देख सकूँ सर्वत्र तुम्हारी सतत मधुर मुसकान॥ हो चाहे परिवर्तन कैसा भी — अति क्षुद्र , महान। सुन्दर-भीषण , लाभ-हानि , सुख-दु:ख , मान-अपमान॥ प्रिय-अप्रिय , स्वस्थता-रुग्णता , जीवन-मरण-विधान। सभी प्राकृतिक भोगोंमें हो भरे तुम्हीं भगवान॥ हो न उदय उद्वेग-हर्ष कुछ , कभी दैन्य-अभिमान। पाता रहूँ तुम्हारा नित संस्पर्श बिना-उपमान॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ६२ ] राग जैतकल्याण — ताल मूल आते हो तुम बार-बार प्रभु!   मेरे मन-मन्दिरके द्वार। कहते —‘ खोलो द्वार , मुझे तुम ले लो अंदर करके प्यार ’ ॥ मैं चुप रह जाता , न बोलता , नहीं खोलता हृदय-द्वार। पुन: खटखटाकर दरवाजा करते बाहर मधुर पुकार॥ ‘ खोल जरा सा ’ कहकर यों —‘ मैं , अभी काममें हूँ , सरकार। फिर आना ’— झटपट मैं घरके कर लेता हूँ बंद किंवार॥ फिर आते , फिर मैं लौटाता , चलता यही सदा व्यवहार। पर करुणामय!  तुम न ऊबते , तिरस्कार सहते हर बार॥ दयासिन्धु!  मेरी यह दुर्मति हर लो , करो बड़ा उपकार। नीच-अधम मैं अमृत छोड़ , पीता हालाहल बारंबार॥ अपने सहज दयालु विरदवश , करो नाथ!   मेरा उद्धार। प्रबल मोहधारामें बहते नर-पशुको लो तुरत उबार॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर