|| श्रीहरिः || आज की शुभतिथि-पंचांग भाद्रपद कृष्ण, दशमी, शनिवार, वि० स० २० ७० गत ब्लॉग से आगे ... पर द्रोही पर दार रत पर धन पर अपबाद | ते नर पाँवर पापमय देह धरे मनुजाद || लोभइ ओढन लोभइ डासन | सिस्रोदर पर जमपुर त्रास न | काहूँ की जों सुनहिं बड़ाई | स्वास लेहीं जनु जूडी आई || जब काहूँ के देखहि विपती | सुखी भये मानहूँ जग नृपति || स्वारथ रत परिवार बिरोधी | लंपट काम क्रोध अति क्रोधी || माता पिता गुर विप्र न मानहीं | आपु गए अरु घालहिं आनहि || करहीं मोह बस द्रोह परावा | संत संग हरी कथा न भावा || अवगुन सिन्धु मंदमति कामी | बेद विदुषक परधन स्वामी || बिप्र द्रोह पर द्रोह विसेषा | दंभ कपट जिय धरे सुबेषा || यदि सच्चाई के साथ विचार करके देखा जाय तो न्यूनाधिक रूप में ये सभी लक्षण आज हमारे मानव-समाज में आ गए है | सारी दुनिया की यही स्थिती है | सभी और मनुष्य आज काम-लोभपरायण होकर असुर- भावापन्न हुआ जा रहा है | परन्तु हमारे देश की स्थिती देखकर और भी चिन्ता तथा वेदना होती है | जिस देश में त्याग को ही जीवन का लक्ष्य माना जाता था, जहाँ स्त्रीमात्र
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