आप भगवान् का अखण्ड स्मरण चाहते हैं, आपके मन में इसके लिए छटपटाहट भी होती है, आप कभी-कभी बड़ी पीड़ा भी अनुभव करते हैं कि आपको यह स्थिति तुरन्त क्यों नहीं प्राप्त हो जाती - ये सब बातें उत्तम हैं l आप भगवान् के कृपा पर विश्वास करके अपनी इस सदिच्छा को अनन्य तथा निर्मल बनाते रहिये - भगवत्कृपा से आपको भगवान् की अखंड स्मृति का प्राप्त होना कठिन नहीं है l पर इस समय आपको जो बाधा अनुभव हो रही है, उस पर आप गहराई से विचार करेंगे तो आप जन सकेंगे कि लौकिक विषयों को लेकर आपकी प्रतिकूल भावनाजनित चित्त की अशांति इसमें एक प्रधान कारण है l आप जानते हैं की यहाँ फलरूप में जो प्राप्त होता है, वह पूर्व निश्चित्त होता है और अधिकांशतः अपरिवर्तनीय एवं अनिवार्य होता है तथा यह भी आप जानते हैं कि उसके किसी भी 'प्रिय' या 'अप्रिय' रूप से आत्मा की दृष्टि से आप का कोई लाभ या हानि नहीं होती, तथापि आप सभी कुछ अपने मन के अनुकूल चाहते हैं, जरा-सी भी मन के विपरीत बात को सहन नहीं कर सकते और अत्यंत दुखी तथा अशान्त हो जाते हैं l भगवान् का मंगल विधान मानकर भी सन्तोष नहीं कर ...
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