[ ४३ ] तर्ज लावनी — ताल कहरवा श्रीराधा-माधव! यह मेरी सुन लो बिनती परम उदार। मुझे स्थान दो निज चरणोंमें , पावन प्रभु! कर कृपा अपार॥ भूलूँ सभी जगतको , केवल रहे तुम्हारी प्यारी याद। सुनूँ जगतकी बात न कुछ भी , सुनूँ तुम्हारे ही संवाद॥ भोगोंकी कुछ सुधि न रहे , देखूँ सर्वत्र तुम्हारा मुख। मधुर-मधुर मुसकाता , नित उपजाता अमित अलौकिक सुख॥ रहे सदा प्रिय नाम तुम्हारा मधुर दिव्य रसना रसखान। मनमें बसे तुम्हारी प्यारी मूर्ती मञ्जु सौन्दर्य-निधान॥ तनसे सेवा करूँ तुम्हारी , प्रति इन्द्रियसे अति उल्लास। साफ करूँ पगरखी-पीकदानी सेवा-निकुञ्जमें खास॥ बनी खवासिन मैं चरणोंकी करूँ सदा सेवा , अति दीन। रहूँ प्रिया-प्रियतमके नित पद-पद्म-पराग-सुसेवन-लीन॥
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