शरीर से प्राण कब चले जाये पता नहीं, अतः सदा तैयार रहना चाहिये । वह तैयारी है - भगवान की नित्य निरन्तर मधुर स्मृति और भोगों से सर्वथा उपरत रहना । जिसको हम सदा के लिए अपने पास नहीं रख सकते, उसकी इच्छा करने से और उसको पाने से क्या लाभ । प्रेम रूप सूर्य का उदय होते ही मोह रूप अन्धकार मिट जाता है । प्रेम से इच्छाऒं की निवृत्ति और मोह से इच्छाऒं की उत्पत्ति होती है । प्रेम अपने से, और मोह शरीर से होता है । प्रेम एक से और मोह अनेक से होता है । प्रेम के उदय होते ही विषय विकार मिट जातें हैं । प्रेमी को अनेक में एक ही मालूम होता है । एक ही भगवान अनेक रूपों में दीख रहे हैं, इसलिए सबकी सेवा भगवान की ही सेवा है ।
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