अब आगे.......... जिनके चरणकमल की रज का सभी लोकपाल अपने किरीटों के द्वारा सेवन करते हैं, अक्रूरजी ने गोष्ट में उनके चरण चिन्हों के दर्शन किये l उन चरण चिन्हों के दर्शन करते ही अक्रूरजी के ह्रदय में इतना आह्लाद हुआ कि वे अपने को सँभाल न सके, विह्वल हो गए l प्रेम के आवेग से उनका रोम-रोम खिल उठा l नेत्रों में आंसू भर आये और टप-टप टपकने लगे l वे रथ से कूदकर उस धूलि में लोटने लगे और कहने लगे - 'अहो ! यह हमारे प्रभु के चरणों कि रज है' l यहाँ तक अक्रूरजी के चित्त कि जैसी अवस्था रही है, यही जीवों के देह धारण करने का परम लाभ है l इसलिए जीव मात्र का यही परम कर्त्तव्य कि दम्भ, भय और शोक त्यागकर भगवान् की मूर्ति (प्रतिमा, भक्त आदि) चिन्ह, लीला, स्थान तथा गुणों दर्शन-श्रवण आदि के द्वारा ऐसा ही भाव सम्पादन करें l ब्रज में पहुँच कर अक्रूरजी ने श्रीकृष्ण और बलराम दोनों भाइयों को गाय दुहने के स्थान में विराजमान देखा l उनके नेत्र शरत्कालीन कमल के समान खिले हुए थे l उन्होंने अभी किशोर अवस्था में प्रवेश ही किया था l उनके चरणों में ध्वजा, वज्र , अंकुश
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